पर्वत की तुंग
शिराओं से
बहती है टकराती,
शूलों से शिलाओं से,
तीव्र वेग से अवतरित होती,
मनुज मिलन की
उत्कंठा से,
ज्यों चला वाण
धनुर्धर की
तनी हुई प्रत्यंचा से.
आकर मैदानों में
शील करती धारण
ज्यों व्याहता करती हो
मर्यादा का पालन.
जीवन देने की चाह
अथाह.
प्यास बुझाती
बढती राह.
शीतल, स्वच्छ ,
निर्मल जल
बढ़ती जाती
करती कल कल
उतरती नदी
भूतल समतल
लेकर ध्येय जीवनदायी
अमिय भरे
अपने…
Added by Neeraj Neer on January 28, 2014 at 10:04am — 36 Comments
मंदरा मुंडा के घर में है फाका,
गाँव में नहीं हुई है बारिश,
पड़ा है अकाल.
जंगल जाने पर
सरकार ने लगा दी है रोक ,
जंगल, जहाँ मंदरा पैदा हुआ,
जहाँ बसती है,
उसके पूर्वजों की आत्मा.
भूख विवेक हर लेता है.
उसके बेटों में है छटपटाहट.
एक बेटा बन जाता है नक्सली.
रहता है जंगलों में.
वसूलता है लेवी.
दुसरे को कराता है भरती
पुलिस में.
बड़े साहब को ठोक कर आया है सलामी
चांदी के बूट से .
चुनाव…
ContinueAdded by Neeraj Neer on January 23, 2014 at 2:00pm — 6 Comments
संस्कृति का क्रम अटूट
पांच हज़ार वर्षों से
अनवरत घूमता
सभ्यता का
क्रूर पहिया.
दामन में छद्म ऐतिहासिक
सौन्दर्य बोध के बहाने
छुपाये दमन का खूनी दाग,
आत्माभिमान से अंधी
पांडित्य पूर्ण सांस्कृतिक गौरव का
दंभ भरती
सभ्यता.
मोहनजोदड़ो की कत्लगाह से भागे लोगों से
छिनती रही
अनवरत,
उनके अधिकार,
किया जाता रहा वंचित,
जीने के मूलभूत अधिकार से,
कुचल कर सम्मान
मिटा दी…
ContinueAdded by Neeraj Neer on January 16, 2014 at 9:58am — 11 Comments
औरत और नदी
………
औरत जब करती है
अपने अस्तित्व की तलाश और
बनाना चाहती है
अपनी स्वतंत्र राह -
पर्वत से बाहर
उतरकर
समतल मैदानों में .
उसकी यात्रा शुरू होती है
पत्थरों के बीच से
दुराग्रही पत्थरों को काटकर
वह बनाती है घाटियाँ
आगे बढ़ने के लिए
पर्वत उसे रखना चाहता है कैद
अपनी बलिष्ठ भुजाओं में
पहना कर अपने अभिमान की बेड़ियाँ,
खड़े करता है,
कदम दर कदम अवरोध .
उफनती ,…
ContinueAdded by Neeraj Neer on January 10, 2014 at 10:39pm — 27 Comments
नदी मर गयी,
बहुत तड़पने के बाद.
घाव मवादी था.
आती है अब महक.
अब शहर में गिद्ध नहीं आते.
कुत्ते लगाते हैं दौड़
उसकी मृत देह पर
फिर भाग खड़े होते हैं.
नदी जवान थी, खूबसूरत.
वह थी चिर यौवना.
भर देती थी जीवन से.
खेलती थी , करती थी अठखेलियाँ,
छूकर कभी इस किनारे को
कभी उस किनारे को.
उछालती जल, करती कल्लोल,
भिंगोती तट के पीपल को.
पुरबाई में पीपल का पेड़
झूम कर करता था…
ContinueAdded by Neeraj Neer on January 2, 2014 at 6:01pm — 24 Comments
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