रूप सँवरा और खुशबू है बनेली जिस्म की
हो गयी है क्यों हवस ही अब सहेली जिस्म की।१।
ये शलभ यूँ ही मचलते पास तब तक आयेंगे
जब तलक यारो जलेगी लौ नवेली जिस्म की।२।
ये चमन ऐसा है जिसमें साथ यारो उम्र के
सूखती जाती है चम्पा औ'र चमेली जिस्म की।३।
रूप का मेहमान ज्यों ही जायेगा सब छोड़ के
हो के रह जायेगी सूनी ये हवेली जिस्म…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 31, 2019 at 7:25pm — 10 Comments
२१२२/२१२२/२१२२/२१२
नींद में भी जागता रहता है जो सोता नहीं
हर बुढ़ापा जिन्दगी भर बेबसी खोता नहीं।१।
है जवानी भी कहाँ अब चैन के परचम तले
सिर्फ बचपन ही कभी चिन्ताओं को ढोता नहीं।२।
ज़िन्दगी यूँ तो हसीं है, इसमें है बस ये कमी
जो भी अच्छा है वो फिर से यार क्यों होता नहीं।३।
नफरतों का तम सदा को दूर हो जाये यहाँ
आदमी क्यों…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 29, 2019 at 7:30pm — 6 Comments
२२१/२१२१/ २२२/१२१२
पाषाण पूजने को जब अन्दर किया गया
हर एक देवता को तब पत्थर किया गया।१।
उनके वतन से थी अधिक कुर्सी निगाह में
दूश्मन को इसके वास्ते सहचर किया गया।२।
यूँ तो चुनाव जीतने बातें विकास की
पर हाल देश का सदा कमतर किया गया।३।
शासक कमीन दे गये हमको वफा का दंड
गद्दार बन गये जो ढब आदर किया गया।४।
जन की भलाई में बहुत करना था काम…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 22, 2019 at 8:05pm — 7 Comments
१२२२/१२२२-/१२२२/१२२२
किसी के घर बहुत आवागमन से प्यार कम होगा
इसी के साथ हर बारी सदा सत्कार कम होगा।१।
जरूरत सब को पड़ती है यहाँ कुछ माँगने की पर
हमेशा माँगने वाला सही हकदार कम होगा।२।
खुशी बाँटो कि बँटकर भी नहीं भंडार होगा कम
अगर साझा करोगे दुख तो उसका भार कम होगा।३।
नजाकत देख रूठो तो मिलेगा मान रिश्तों को
जहाँ रूठोगे पलपल में सुजन मनुहार कम होगा।४।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 17, 2019 at 5:58pm — 8 Comments
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