बड़ी खामोशी से वो कर रहें हैं गुफ्तगू
मगर सब सुन रहे हैं ये उन्हें मालूम नहीं !!
मोहब्बत के खिलें हैं फूल जिनके दर्मियाँ
वो काँटे चुन रहे हैं ये उन्हें मालूम नहीं !!
यूँ शब भर जागकर सौदाई बन तन्हाई का
गलीचा बुन रहे हैं ये उन्हें मालूम नहीं !!
किये हैं ज़ब्त, वादों में जो रिश्ते प्यार के
वो रिश्ते घुन रहें हैं ये उन्हें मालूम नहीं !!
वो हमसे पूंछते हैं इश्क करने की वज़ह
मोहब्बत बेवज़ह है ये उन्हें मालूम नहीं…
Added by रक्षिता सिंह on February 18, 2019 at 9:49am — 2 Comments
अल्फाज़ रूठें हैं -
छोटे बच्चों की तरह,
मेरी शायरी पर -
अपने पैर पटक रहे हैं,
बहुत अरसे के बाद -
आया हूँ मिलने इनसे,
यकीनन इसलिए-
रूठे हैं मुझसे कट रहे हैं !!
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by रक्षिता सिंह on February 8, 2019 at 10:25am — 4 Comments
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