सुनो राजन !
तुम्हे राजा बनाया है हमीं ने !
और अब हम ही खड़े है
हाथ बांधे
सर झुकाए
सामने अट्टालिकाओं के तुम्हारे !
जिस अटारी पर खड़े हो
सभ्यता की ,
तुम कथित आदर्श बनकर ,
जिन कंगूरों पर
तुम्हारे नाम का झंडा गड़ा है ,
उस महल की नींव देखो !
क्षत-विक्षत लाशें पड़ी है
हम निरीहों के अधूरे ख्वाहिशों की ,
और दीवारें बनी है
ईंट से हैवानियत की !
है तेरे संबोधनों में दब…
ContinueAdded by Arun Sri on February 25, 2012 at 10:55am — 6 Comments
बहुत दुखते हैं
पुराने घाव ,
जब आती हैं
मरहम लगाने
नई उँगलियाँ !
उन्हें नही पता -
कितनी है
जख्म की गहराई ,
क्या होगी
स्पर्श की सीमा !
उनमे नही होती
पुराने हाथों जैसी छुअन !
रिसने दो
मेरे घावों को ,
क्योकि बहुत दुखतें हैं
पुराने घाव
जब आती है
मरहम लगाने
नई उँगलियाँ !
अब और दर्द सहा न जाएगा…
ContinueAdded by Arun Sri on February 23, 2012 at 10:30am — 12 Comments
अश्रु गण साथी रहे
मेरे ह्रदय की पीर बनकर !
रात चुभ जाती हमेशा तीर बनकर !
मैं भटकता नीर बनकर !
तुम सुनहरे स्वप्न सी हो
मैं नयन हूँ !
बिन तुम्हारे मैं अधूरा
और मेरे बिन तुम्हारा अर्थ कैसा !
जीत की उम्मीद से प्रारंभ होकर
निज अहम के हार तक का ,
प्रथम चितवन से शुरू हो प्यार तक का ,
प्यार से उद्धार तक का
मार्ग हो तुम !
मै पथिक हूँ !
निहित हैं तुझमे सदा से
कर्म मेरे
भाग्य…
ContinueAdded by Arun Sri on February 22, 2012 at 1:00pm — 7 Comments
रास्ते प्यार के अब ह़ो चुके दुश्मन साथी
अब चलो बाँट लें हम मंजिलें अपनी-अपनी
वर्ना ये गर्द उठेगी अभी तूफां बनकर
ख्वाब आँखों के सभी चुभने लगेंगे तुमको
बनके आंसू अभी टपकेंगे तपते रस्ते पर
मगर ये पाँव के छालों को न राहत देंगे !
तपिश तो और अभी और बढ़ेगी साथी
तब भी क्या प्यार में जल पाओगी शमां बनकर ?
पाँव रक्खोगी जब जलते हुए अंगारों पर
शक्लें आँखों में ही रह जाएंगी धुआं बनकर !
मैं जानता हूँ कि अब कुछ नही होने वाला
वक्त को…
Added by Arun Sri on February 16, 2012 at 12:05pm — 2 Comments
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