हर राह पर तेरी रजा
तू ही सनम तू ही खुदा
तो क्यों ही तेरे फैसलों पे
धूल सी जमी रही
बोल क्या कमी रही
क्यों ही तेरे दिल में वो, गैर ही बसा रहा,
क्यों लचकती बांह में गुल वही कसा रहा|
मैं भी तो पलाश बन बिछा था तेरी राह में,
मैं भी तो बहार सब लुटा रहा था चाह में|
क्यों दुआ में जागती
फिर आँख में नमी रही
बोल क्या कमी रही?
कैसे तेरे दिल से मैं नाम उसका खींच लूं,
या कि अपनी चाहतों के मैं गले ही भींच दूं|
तू देख मेरे हाथ…
Added by Pushyamitra Upadhyay on February 22, 2013 at 10:00pm — 12 Comments
पत्थर दिलों के पिघलने तो दो
ज़रा होश अपने संभलने तो दो
सारा चमन तो जलाया है तुमने
कोई फूल अब थोडा खिलने तो दो
हर शाख पर अब तो उल्लू है बैठा
कहीं इन परिंदों को मिलने तो दो
अंधेरों से डरते सभी हैं यहाँ पर
जरा तुम ये सूरज निकलने तो दो
ये आँखें ही कल की हकीकत रचेंगी
मगर आज ख्वाबों को पलने तो दो
-पुष्यमित्र उपाध्याय
Added by Pushyamitra Upadhyay on February 14, 2013 at 6:50pm — 7 Comments
पथ मेरे ये अंधेरों में घिरने लगे…
ContinueAdded by Pushyamitra Upadhyay on February 13, 2013 at 12:30am — 13 Comments
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