2122 2122 2122 22
जनाब क़तील शिफ़ाई साहब की एक ग़ज़ल 'अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझको' जिसे जगजीत सिंह साहब ने गाया है उसी ग़ज़ल को गुनगुनाते हुए ये ग़ज़ल हुई है बहर थोड़ी परिवर्तित हुई है
तमाम दोस्तों को सादर समर्पित
स्वीकारें
कुछ हसीं फूलों से जीवन को सजा ले अब तो,
खुद को गुमनामी के पतझड़ से बचा ले अब तो.
मेरे जख्मों पे बड़ी तेरी इनायत होगी,
संग हाथों में कोई तू भी उठा ले अब तो.
अपनी गुल्लक को दिखा माँ को…
ContinueAdded by मनोज अहसास on February 16, 2020 at 10:00pm — 4 Comments
2×15
बीच सफर में धीरज टूटा,हाथों से पतवार गई.
मेरे मन की लाचारी से मेरी कोशिश हार गई.
एक अधूरा ख्वाब जो मुद्दत से आंखों में जिंदा है,
उसको लिखने की कोशिश में स्याही भी बेकार गई.
पिछले साल में और कोई था अब के साल में और कोई,
एक नए इजहार को चाहत फूलों के बाजार गई.
बरसों पहले जिसको चाहा उसकी यादें साथ रहें,
एक दुआ के आगे मेरी हर इक ख्वाहिश हार गई.
पापा की आंखों ने उसको जाने क्या क्या समझाया,
बेटी जब…
Added by मनोज अहसास on February 12, 2020 at 1:10pm — 5 Comments
221 2121 1221 212
आएगा जब तलक नहीं मौसम गुलाब का,
बदला रहेगा मूड मेरे आफताब का।
मज़बूरियों में जल गई इक उम्र की वफ़ा,
उसने दिखाया मुझको सलीका नकाब का।
मैं ऐसी शाइरी की तमन्ना में कैद हूँ ,
इक शेर में जो कह दे फसाना किताब का।
वो बेहिसाब बातों से भर देंगे सबका पेट,
जिनको समझ रहा है तू पक्का हिसाब का।
तासीर क्या है होठों से छूकर पता करो,
इक जाम ही बहुत है सुखन या शराब…
Added by मनोज अहसास on February 9, 2020 at 11:30pm — 2 Comments
2122 2122 2122 212
जब सफलता मिल गई खुद का किया लिक्खा गया,
अपनी हारों को खुदा का फैसला लिक्खा गया।
आपके शफ्फाक दामन को बचाने के लिए,
कत्ल मुझ बदबख्त का इक हादसा लिक्खा गया।
दर ब दर होते रहे वो सारे खत खुशियों भरे ,
जिन पर तेरा नाम और मेरा पता लिक्खा गया।
चार भाई साथ रहकर कितने खुश थे हम कभी,
टूटकर बिखरे तो फिर दिल भी जुदा लिक्खा गया।
अब हमारी जिंदगी में एक उलझन ये भी है,
उसके दिल में…
Added by मनोज अहसास on February 1, 2020 at 12:07am — 2 Comments
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