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GOPAL BAGHEL 'MADHU''s Blog – February 2011 Archive (5)

उरों के इस अंजुमन में द्वन्द ना है

 

उरों के इस अंजुमन में द्वन्द ना है 

(मधु गीति सं. १४७९, दि. २५ अक्टूवर, २०१०) 



उरों के इस अंजुमन में द्वन्द ना है, स्वरों के इस समागम में व्यंजना है; 

छंद का आनन्द उद्गम स्रोत सा है, लय विलय का सुर तरे भव भंगिमा है. 

 …

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Added by GOPAL BAGHEL 'MADHU' on February 1, 2011 at 8:56pm — 1 Comment

चिलचिलाती धूप में तुम याद आये

 

चिलचिलाती धूप में तुम याद आये 

मधु गीति सं. १५९६ , रचना दि. ३१ दिसम्वर, २०१०)

 

चिलचिलाती धूप में तुम याद आये, झिलमिलाती रोशनी में नजर आये; 

किलकिलाती दुपहरी में दिल लुभाए, तिलमिलाती…

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Added by GOPAL BAGHEL 'MADHU' on February 1, 2011 at 8:50pm — 1 Comment

मग बुहारूँ जग निहारूँ प्रीति ढालूँ

मग बुहारूँ जग निहारूँ प्रीति ढालूँ 

(मधु गीति सं. १५९७, दि. ३१ दिसम्वर, २०१०) 

 

मग बुहारूँ जग निहारूँ प्रीति ढालूँ, त्राण तरजूँ मनहि बरजूँ प्राण परसूँ; 

श्याम हैं मधु राग भरकर गीत गाये, प्रीति की भाषा लिये…

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Added by GOPAL BAGHEL 'MADHU' on February 1, 2011 at 8:46pm — 1 Comment

क्यों किलसते हो प्रलय के गीत सुनकर

क्यों किलसते हो प्रलय के गीत सुनकर 

(मधु गीति सं. १६०४, रचना दि. २ जनवरी, २०११)

 

क्यों किलसते हो प्रलय के गीत सुनकर, क्यों विलखते हो विलय का राग सुनकर; 

दया क्यों ना कर रहे  जग जीव पर तुम, हृदय क्यों ना ला रहे तुम…

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Added by GOPAL BAGHEL 'MADHU' on February 1, 2011 at 8:44pm — 3 Comments

छान्दसिक आनन्द की गति में हुलस कर

 

छान्दसिक आनन्द की गति में हुलस कर

(मधु गीति सं. १६२२, दि. ७ जनवरी, २०११)

 

छान्दसिक आनन्द की गति में हुलस कर, मिलन की अभिव्यंजना से विदेही उर;…

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Added by GOPAL BAGHEL 'MADHU' on February 1, 2011 at 8:42pm — No Comments

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