7 फेलुन 1 फ़ा
मेरी यादों से वो यारो जब भी घबराते हों गे
माज़ी के क़िस्सों से अपने दिल को बहलाते हों गे
काले बादल शर्म से पानी पानी हो जाते हों गे
बाम प आकर जब वो अपनी ज़ुल्फ़ें लहराते हों गे
जैसे हमको यार हमारे समझाने आ जाते हैं
उसके भी अहबाब यक़ीनन उसको समझाते हों गे
हम तो उनके हिज्र में तारे गिनते रहते हैं शब भर
वो तो अपने शीश महल में चैन से सो जाते हों…
ContinueAdded by Samar kabeer on February 13, 2020 at 5:55pm — 20 Comments
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