2122 2122 2122
जख्म हम अपने छिपाने में लगे है,
खुद को’ हम पत्थर बनाने में लगे है।
पूछ मत हमको हुआ क्या आजकल ये,
दर्द दिल का हम भुलाने में लगे है।
कौन देता है सहारा अब यहां पर,
बोझ अपना खुद उठाने में लगे है।
दिल जगत का बेरहम चट्टान जैसा,
फिर भी’ पत्थर को मनाने में लगे है।
देश हित की बात ‘‘मेठानी’’ करे क्या,
द्रोहियों को हम बचाने में लगे है।
( मौलिक एवं अप्रकाशित)
- दयाराम…
Added by Dayaram Methani on February 19, 2019 at 10:00pm — 8 Comments
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