#गजल#
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22 22 22 22
जैसे-तैसे आगे आता
मैं भी जनसेवक हो जाता!1
सेवा के आयाम बहुत हैं
अपनी सब करतूत गिनाता!2
नकली आँसू के छींटे दे
मन के माफिक मेवे खाता!3
पाँच बरस मुझको मिल जाते
चार पहर रोते फिर दाता!4
भाषा को हथियार बनाकर
जोर लगा मैं शोर मचाता!5
जात-धरम के पेड़ फफनते
थोड़े बिरवे और बढ़ाता!6
मेरी खातिर भींग कहें…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on February 26, 2017 at 11:08am — 4 Comments
Added by Manan Kumar singh on February 19, 2017 at 9:00am — 17 Comments
Added by Manan Kumar singh on February 14, 2017 at 8:39pm — 16 Comments
गाँव में होली
गाँव में होली अपनी उफान पर थी । चंदू के द्वार पर सुबह से ही चौपाल बैठ गयी थी । उनका भतीजा कहीं बाहर कुछ काम करता था । उसीने शराब की कुछ बोतलें घर भेज रखी थीं । गाँव में उसका बड़ा भतीजा रहता था ; कुछ काम का, न काज का, बस दोस्त समाज का !खाने –पीनेवालों का ताँता सुबह से उसके दर पे लगने लगा,मुफ्त में शराब और गोश्त के कुछ पर्चे मयस्सर जो हो रहे थे । बीच –बीच में माँ –बहन की भी हो जा रही थी। सुननेवालों के मजे –ही –मजे थे । हम भी अपने दरवाजे पर…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on February 12, 2017 at 7:41pm — 4 Comments
2122 2122 212
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गीत कौवे गा रहे हैं आजकल
कंठ कोयल के भरे हैं आजकल।1
दुश्मनी सारी भुलाकर मसखरे
फिर गले से मिल रहे हैं आजकल।2
गालियाँ देते परस्पर जो रहे
प्रीत के सागर बने हैं आजकल।3
आज दुबके हैं सभी गिरगिट यहाँ
रंग बदलू आ गये हैं आजकल।4
कुर्सियों का ताव इतना बढ़ गया
धुर विरोधी भा गये हैं…
Added by Manan Kumar singh on February 7, 2017 at 7:00pm — 12 Comments
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तीर चले चुन-चुन के कस-कस
मन तो भूला जाता सरबस।1
बूढ़ा बरगद बौराया है
अँगिया- गमछा करते सरकस।2
छौंरा- छौंरी छुछुआये हैं
पुरवा घर-घर करती बतरस।3
बढ़नी लेकर काकी दौड़ी
सच तो सहना पड़ता बरबस।4
फागुन की फुनगी अँखुआयी
चौरा-चौरा होता चौकस।5
आतुर होकर आज हवाएँ
ढूँढ़ रहीं निज मरकज,बेकस।6
मन का मीत कहीं मिल जाये
मनुआ दौड़ चला जस का तस।7
रंग चढ़ा जिसको,वह उछले
बाकी कहते,रहने दो…
Added by Manan Kumar singh on February 4, 2017 at 8:30am — 22 Comments
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