बगावत
बगावत की है कलम ने
उसे भी अब आरक्षण चाहिए-
कुछ भी लिख दे
पुस्तकाकार में छपना चाहिए!
मैं अड़ गया अपना ईमान लेकर
तो
कलम ने अट्टहास किया,
तोड़ा, मरोड़ा, उखाड़ फेंका
उन शब्दों की पटरी को
जिन पर भूले-भटके
मेरी कल्पना की रेलगाड़ी
कभी-कभी खिसकती महसूस होती थी
और मैं बंद खिड़की के भीतर से
अनायास देखता रहता था पीछे सरकते
लहलहाते हुए, सूखाग्रस्त या
बाढ़ के गंदे पानी में…
Added by sharadindu mukerji on February 25, 2016 at 9:52pm — 1 Comment
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