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Sushil Sarna's Blog – February 2018 Archive (5)

तुम्हारी कसम....

तुम्हारी कसम.... 

हिज़्र की रातों में

तन्हा बरसातों में

खामोश बातों में

नशीली मुलाकातों में

तुम्हारी कसम

सिर्फ़

तुम ही तुम हो

चांदनी के शबाब में

पलकों के ख्वाब में

प्यालों की शराब में

अर्श के माहताब में

तुम्हारी कसम

सिर्फ़

तुम ही तुम हो

ख्यालों की बाहों में

बेकरार निगाहों में

गुलों की अदाओं में

आफ़ताबी शुआओं में

तुम्हारी कसम

सिर्फ़

तुम ही तुम…

Continue

Added by Sushil Sarna on February 16, 2018 at 2:24pm — 14 Comments

अस्तित्व ....

अस्तित्व ....

एक अस्तित्व
शून्य हुआ
एक शून्य
अस्तित्व हुआ
धूप-छाँव के बंधन का
हर एक सूरज
अस्त हुआ
ज़िंदगी ज़मीन की
ज़मीन के पार
चलती रही
और
दूर कहीं
कोई चिता
धू-धू कर
जलती रही

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on February 11, 2018 at 3:15pm — 7 Comments

1. खोये स्वप्न .../2. मन्नत   ....

1. खोये स्वप्न ...

तमाम रात

मेरे साथ था

एक स्वप्न

भोर होते ही

वो स्वप्न

स्वप्न सा हो गया

मैं

देर तक

पलकों की दहलीज़

बुहारती रही

खोये स्वप्न को

ढूंढने के लिए

...........................

2. मन्नत   ....

देर तक

रुका रहा

मेरे घर की छत पर

वो आसमान से टूटा

मन्नत का तारा

मेरे ज़ह्न में

काँपता रहा

देर तक उसका ख़्याल

मेरी आँखों के कटोरों में

कोई अपने अक्स की…

Continue

Added by Sushil Sarna on February 4, 2018 at 3:52pm — 13 Comments

अमर हो गए ...

अमर हो गए ...

मेरी हिना

बहुत लजाई थी

जब तुम्हारे स्पर्श

मेरे हाथों से

टकराये थे

मेरा काजल

बहुत शरमाया था

जब

तुम्हारी शरीर दृष्टि ने

मेरी पलक

थपथपाई थी

मेरे अधर

बहुत थरथराये थे

जब तुम्हारी

स्नेह वृष्टि ने

मेरे अधर तलों को

अपने स्नेहिल स्पर्श से

स्निग्ध कर दिया था

मैं शून्य हो गयी

जब

प्रेम के दावानल में

मेरा अस्तित्व

तुम्हारे अस्तित्व के…

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Added by Sushil Sarna on February 3, 2018 at 4:35pm — 6 Comments

आहट की प्रतीक्षा में ...

आहट की प्रतीक्षा में ...

जाने

कितनी घटाओं को

अपने अंतस में समेटे

अँधेरे में

चुपचाप

बैठी रही

कौन था वो

जो कुछ देर पहले

देर तक

मेरे मन की

गहन कंदराओं में

अपने स्वप्निल स्पर्शों से

मेरी भाव वीचियों को

सुवासित करता रहा

और

मैं

ऑंखें बंद करने का

उपक्रम करती हुई

उसके स्पर्शों के आग़ोश में

मौन अन्धकार का

आवरण ओढ़े

चुपचाप

बैठी रही

आहटें

रूठ गयीं…

Continue

Added by Sushil Sarna on February 1, 2018 at 3:23pm — 13 Comments

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