जिस ख्वाब की बदौलत ताउम्र सो न पाये
ना उनके हो सके हम वो मेरे हो न पाये
बादल ने पलकें भींची मौसम के आंसू छलके
पर सुर्ख दग्ध धरती के दाग धो न पाये
पैग़ाम दे गया वो सरहद पे मरते- मरते
कुर्बानियो पे मेरी आँखें भिगो न पाये
चाहा भले सभी ने बरबाद मुझको करना
सरसब्ज़ हसरतों की कश्ती डुबो न पाये
कुदरत को जालिमो ने इस तरह से सताया
ना हँस सके परिन्दे अब्रपार रो न पाये
मायूस तू न…
ContinueAdded by rajesh kumari on March 31, 2013 at 12:00am — 18 Comments
मौसम में भी मच रही, फागुन की अब धूम|
झूमें हँस-हँस मंजरी, भँवरे जाते चूम||
डाल-डाल पर खिल रहे,केसर टेसू फूल|
आपस में घुल मिल गए ,बैर भाव को भूल||
महकी डाली आम की,मादक-मादक भोर|
लिखती पाती प्रेम की,होकर मस्त विभोर||
कान्हा को फुसला रही,फागुन प्रीत बयार|
राधा जी को भा रही,स्नेहिल रंग फुहार||
चन्दा ने फैला दिया,चाँदी भरा रूमाल|
सूरज ने बिखरा दिया,पीला ,लाल गुलाल||
क्यारी-क्यारी दे…
ContinueAdded by rajesh kumari on March 20, 2013 at 4:32pm — 10 Comments
आज इतनी जल्दी क्लिनिक बंद कर के कैसे आ गए डॉक्टर साहब निशा ने दरवाज़ा खोलते ही अपने पति से पूछा|डॉक्टर अरुण बोले आज एक ऐसी पेशेंट आई जो तीन बेटियों की माँ थी और चौथी बार गर्भवती थी बोली डॉक्टर साहब मुझे गर्भ से ही एहसास हो रहा है कि ये उस कमीने का होने वाला बीज लड़का ही है जो मुझे नही चाहिए मैं नही चाहती कि कल वो भी किसी की बेटी पर उतने ही जुल्म ढाये जो इसके बाप ने मेरे और मेरी बेटियों के ऊपर ढाये|और हैरानी की बात ये थी कि वो सच ही कह रही थी उसके गर्भ में लड़का ही था,और मैं नियम क़ानून से…
ContinueAdded by rajesh kumari on March 8, 2013 at 11:09am — 16 Comments
उदित सौर मंडल शिखर, ऊर्जस्वी आदित्य
विद्याभूषण में जड़ित, नग हिन्दी साहित्य
नग हिंदी साहित्य, संकलन काव्य निरूपम
छंदों की रसधार, नव निरवच्छिन्न अनुपम
काव्य कोष में छंद, मधुर कविताएँ अन्वित
ज्ञान अमिय मकरंद, पिए हिय कलिका प्रमुदित…
Added by rajesh kumari on March 2, 2013 at 1:00pm — 18 Comments
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