२१२२ २१२२ २१२
दर ब दर भटके बिचारी ज़िन्दगी
मौत से भी देखो हारी ज़िन्दगी
आसुओं में रही यूँ वो तर ब तर
इसलिए तो लगती खरी ज़िन्दगी
मांगती ही रहती है साँसे सदा
हर बशर की है भिखारी ज़िन्दगी
ख़त्म गर्भों में हुई जो धडकनें
अब कहाँ है वो कुंवारी ज़िन्दगी
बोझ ढोता ही रहा परिवार का
एक बच्चे ने भली सँवारी ज़िन्दगी
गुमनाम पिथौरागढ़ी
मौलिक व अप्रकाशित
Added by gumnaam pithoragarhi on March 16, 2015 at 8:00pm — 14 Comments
Added by gumnaam pithoragarhi on March 15, 2015 at 8:51am — 8 Comments
Added by gumnaam pithoragarhi on March 4, 2015 at 6:18pm — 6 Comments
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