For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Amod shrivastav (bindouri)'s Blog – March 2019 Archive (9)

सुब्ह शाम की तरह अब ये रात भी गई ..

2121-212-2121-212

सुब्ह शाम की तरह अब ये रात भी गई।।

ख़ैरख्वाह वो बने,खैर-ख्वाही' की गई।।

मुद्दतों के बाद गर जो यूँ बात की गई।।

खामियां जता के ही गात फिर भरी गई।।

गर दो'-आब की पवन,रोंक लें ये खिड़कियां ।

रूह चंद दिवारों के दरमियाँ सिली गई।।

गर कहूँ जो' उनकी' तो साफ़ लफ़्ज हैं यही।

रात-ओ-दिन युँ आदतन हमसे बात की गई ।।

बिन पढ़े किताब -ए- दिल ,ग़र हिंसाब कर दिया ।।

तो दरख़्ती' जिंदगी क़त्ल ही तो की…

Continue

Added by amod shrivastav (bindouri) on March 22, 2019 at 10:30am — 1 Comment

कोई ऐसे रूठता है क्या

122-1212-22

.

कोई रोकने लगा है क्या  ?

कोई राज दरमियां है क्या?

तेरा फोन अब नहीं आता!!

कोई और मिल गया है क्या ?

मुझे गैर कह दिया तुमने!!

मेरा वास्ता बुरा है क्या ?

मेरे रूबरू नहीं रहते!!

मेरा साथ बददुआ है क्या?

तू ही खैरख्वाह बस मेरा!!

तू भी आजकल खफा है क्या?…

Continue

Added by amod shrivastav (bindouri) on March 17, 2019 at 9:00pm — 1 Comment

मन की मनमानी को ठुकराने लगे हैं ..

2122-2122-2122

वक्त से दो चार हो जाने लगे हैं।।

मन की मनमानी को ठुकराने लगे हैं।।

अब जो अरमानों को टहलाने-लगे* हैं।।(बहाने बाजी करना)

जीस्त की सच्चाई अपनाने लगे हैं।।

उम्र की दस्तक़ जो है चहरे प मेरे।

श्वेत होकर केश लहराने लगे हैं।।

बचपना अब रूठता सा जा रहा है ।

पौढ़पन* अब अक्श दरसाने लगे हैं।।

मंजिलों में जिनके परचम दिख रहे उन।

सब के तर* पे शाल्य* मनमाने लगे हैं।।( निचला हिस्सा,…

Continue

Added by amod shrivastav (bindouri) on March 16, 2019 at 1:21pm — 4 Comments

जाने क्या कह रहा है मेरा आज मन ..गीत



शीत जैसी चुभन, आग जैसी जलन।।

जाने क्या कह रहा है मेरा आज मन।।

इक कशिश पल रही है हृदय में कहीं।

कश्मकश चल रही , साथ मेरे कोई।।

डुबकियां ले रहा ही मेरा आज मन।।

इस कदर है अधर से अधर का मिलन।।

जैसे पुरवा पवन छू रही हो बदन।।..१

जाने क्या कह रहा है .....

गर हूँ तन्हा मेरे साथ तन्हाई है।

भीड़ के साथ हूँ तो ये रूसवाई है।

दौड़कर पास आना लिपटना तेरा।।

मेरे आगोश में यूँ सिमटना तेरा।।

यूँ लगे जैसे मिलतें हो धरती…

Continue

Added by amod shrivastav (bindouri) on March 12, 2019 at 10:48am — 2 Comments

मन भी कितना आतुर है ..

22-22-22-2

मन भी कितना आतुर है।।

ज्यूँ सबकुछ जीवन भर है।।

पशुओं  कि यह हालत भी।

इंसानों से बेहतर है।।

लोक समीक्षा इतनी ही।

जितना चिड़िया का पर है।।

मेरा मेरा मुझको ही।

छाया है सब छप्पर है।।

कितना तुम अब भागोगे ।

तीन-कदम* पर ही घर है।।(बचपन जवानी बुढ़ापा)

खूब बड़े बन जाओ क्या…

Continue

Added by amod shrivastav (bindouri) on March 11, 2019 at 2:49pm — 3 Comments

मैं वक्त कहाँ कब रुकता हूँ .

22-22-22-22

मैं कुछ और कहाँ कहता हूँ।।
गैरों से लिपटा - अपना हूँ।।

वैमनष्यता न सर उठा पाए।
दुश्मन की तरहा रहता हूँ।।

दरपण भी छू सकता है क्या।
बस ये ऐसे ही - पूछा हूँ।

कलियाँ खुशबू बिखरायेंगी।
मैं वक़्त कहाँ कब रुकता हूँ।।

आमोद रखो, बिश्वास रखो।
पग पग जीवन में अच्छा हूँ।।


..अमोद बिंदौरी / मौलिक अप्रकाशित

Added by amod shrivastav (bindouri) on March 10, 2019 at 11:30am — 5 Comments

सच की झूठी जिल्दकारी क्या करूँ ..

2122-2122-212

याद आती है तुम्हारी क्या करूँ ।।

छाई रहती है खुमारी  क्या करूँ।।

अब नहीं चलता , मेरे पे बस मेरा।

बढ़ रही नित बेक़रारी क्या करूँ।।

खुद मुआफ़िक आयत ए कुरआन हो।

इसमें अच्छी अर्श कारी क्या करूँ।।

झूठा' सिक्का अब चलन बाजार का

सच की झूठी जिल्दकारी क्या करूँ।।

हर्ज़ कोई बात से…

Continue

Added by amod shrivastav (bindouri) on March 9, 2019 at 3:30pm — 4 Comments

कोई उम्मीद का सूरज कहीं पर है खड़ा सायद

1222-1222-1222-1222

जो नजरें अब तलक बेख़ौफ़ दौड़ी जा रहीं हैं यूँ।।

कई आशाएं तपती रेत को खंघला रहीं हैं यूँ।।

कोई उम्मीद का सूरज , कहीं पर है खड़ा सायद।

पहल की किरने ये पैग़ाम लेकर आ रहीं हैं यूँ।।

ये सन्नाटा जो पसरा चीख़ के कुछ अंश बांकी हैं।

दिशाएँ इंतक़ाम-ए-जंग को दुहरा रहीं हैं यूँ।।

विषमता में खड़ी हो लोकधर्मी जंग लड़कर अब।

रिसाल ए रौशनाई हौसले उमड़ा रहीं हैं यूँ।।

कोई तो लिख रहा बेशक नया भारत किताबों में।…

Continue

Added by amod shrivastav (bindouri) on March 6, 2019 at 7:39pm — 1 Comment

अहसास होगा याद अगर करते हैं

2212-22-1122-22

अहसास होगा याद अगर करते हैं।।

आती है क्यूँ चाहत, के क्यूँ घर करते हैं।।

इस आस से की कल कुछ अच्छा होगा।

हम लोग इक दिन और सफर करते हैं।।

मैंने भी अक्सर नाम लिये बिन लिख्खा।

जज्बात ए दिल बेनाम सफर करते हैं।।

ये आपकी आहट ही कुरेदेगी घर को।

जो छोड़ जाना आप नज़र करतें हैं।।(पेश करना)…

Continue

Added by amod shrivastav (bindouri) on March 4, 2019 at 12:30pm — 4 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service