2121-212-2121-212
सुब्ह शाम की तरह अब ये रात भी गई।।
ख़ैरख्वाह वो बने,खैर-ख्वाही' की गई।।
मुद्दतों के बाद गर जो यूँ बात की गई।।
खामियां जता के ही गात फिर भरी गई।।
गर दो'-आब की पवन,रोंक लें ये खिड़कियां ।
रूह चंद दिवारों के दरमियाँ सिली गई।।
गर कहूँ जो' उनकी' तो साफ़ लफ़्ज हैं यही।
रात-ओ-दिन युँ आदतन हमसे बात की गई ।।
बिन पढ़े किताब -ए- दिल ,ग़र हिंसाब कर दिया ।।
तो दरख़्ती' जिंदगी क़त्ल ही तो की…
Added by amod shrivastav (bindouri) on March 22, 2019 at 10:30am — 1 Comment
.
कोई रोकने लगा है क्या ?
कोई राज दरमियां है क्या?
तेरा फोन अब नहीं आता!!
कोई और मिल गया है क्या ?
मुझे गैर कह दिया तुमने!!
मेरा वास्ता बुरा है क्या ?
मेरे रूबरू नहीं रहते!!
मेरा साथ बददुआ है क्या?
तू ही खैरख्वाह बस मेरा!!
तू भी आजकल खफा है क्या?…
Added by amod shrivastav (bindouri) on March 17, 2019 at 9:00pm — 1 Comment
2122-2122-2122
वक्त से दो चार हो जाने लगे हैं।।
मन की मनमानी को ठुकराने लगे हैं।।
अब जो अरमानों को टहलाने-लगे* हैं।।(बहाने बाजी करना)
जीस्त की सच्चाई अपनाने लगे हैं।।
उम्र की दस्तक़ जो है चहरे प मेरे।
श्वेत होकर केश लहराने लगे हैं।।
बचपना अब रूठता सा जा रहा है ।
पौढ़पन* अब अक्श दरसाने लगे हैं।।
मंजिलों में जिनके परचम दिख रहे उन।
सब के तर* पे शाल्य* मनमाने लगे हैं।।( निचला हिस्सा,…
Added by amod shrivastav (bindouri) on March 16, 2019 at 1:21pm — 4 Comments
शीत जैसी चुभन, आग जैसी जलन।।
जाने क्या कह रहा है मेरा आज मन।।
इक कशिश पल रही है हृदय में कहीं।
कश्मकश चल रही , साथ मेरे कोई।।
डुबकियां ले रहा ही मेरा आज मन।।
इस कदर है अधर से अधर का मिलन।।
जैसे पुरवा पवन छू रही हो बदन।।..१
जाने क्या कह रहा है .....
गर हूँ तन्हा मेरे साथ तन्हाई है।
भीड़ के साथ हूँ तो ये रूसवाई है।
दौड़कर पास आना लिपटना तेरा।।
मेरे आगोश में यूँ सिमटना तेरा।।
यूँ लगे जैसे मिलतें हो धरती…
Added by amod shrivastav (bindouri) on March 12, 2019 at 10:48am — 2 Comments
22-22-22-2
मन भी कितना आतुर है।।
ज्यूँ सबकुछ जीवन भर है।।
पशुओं कि यह हालत भी।
इंसानों से बेहतर है।।
लोक समीक्षा इतनी ही।
जितना चिड़िया का पर है।।
मेरा मेरा मुझको ही।
छाया है सब छप्पर है।।
कितना तुम अब भागोगे ।
तीन-कदम* पर ही घर है।।(बचपन जवानी बुढ़ापा)
खूब बड़े बन जाओ क्या…
ContinueAdded by amod shrivastav (bindouri) on March 11, 2019 at 2:49pm — 3 Comments
22-22-22-22
मैं कुछ और कहाँ कहता हूँ।।
गैरों से लिपटा - अपना हूँ।।
वैमनष्यता न सर उठा पाए।
दुश्मन की तरहा रहता हूँ।।
दरपण भी छू सकता है क्या।
बस ये ऐसे ही - पूछा हूँ।
कलियाँ खुशबू बिखरायेंगी।
मैं वक़्त कहाँ कब रुकता हूँ।।
आमोद रखो, बिश्वास रखो।
पग पग जीवन में अच्छा हूँ।।
..अमोद बिंदौरी / मौलिक अप्रकाशित
Added by amod shrivastav (bindouri) on March 10, 2019 at 11:30am — 5 Comments
याद आती है तुम्हारी क्या करूँ ।।
छाई रहती है खुमारी क्या करूँ।।
अब नहीं चलता , मेरे पे बस मेरा।
बढ़ रही नित बेक़रारी क्या करूँ।।
खुद मुआफ़िक आयत ए कुरआन हो।
इसमें अच्छी अर्श कारी क्या करूँ।।
झूठा' सिक्का अब चलन बाजार का
सच की झूठी जिल्दकारी क्या करूँ।।
हर्ज़ कोई बात से…
ContinueAdded by amod shrivastav (bindouri) on March 9, 2019 at 3:30pm — 4 Comments
1222-1222-1222-1222
जो नजरें अब तलक बेख़ौफ़ दौड़ी जा रहीं हैं यूँ।।
कई आशाएं तपती रेत को खंघला रहीं हैं यूँ।।
कोई उम्मीद का सूरज , कहीं पर है खड़ा सायद।
पहल की किरने ये पैग़ाम लेकर आ रहीं हैं यूँ।।
ये सन्नाटा जो पसरा चीख़ के कुछ अंश बांकी हैं।
दिशाएँ इंतक़ाम-ए-जंग को दुहरा रहीं हैं यूँ।।
विषमता में खड़ी हो लोकधर्मी जंग लड़कर अब।
रिसाल ए रौशनाई हौसले उमड़ा रहीं हैं यूँ।।
कोई तो लिख रहा बेशक नया भारत किताबों में।…
Added by amod shrivastav (bindouri) on March 6, 2019 at 7:39pm — 1 Comment
अहसास होगा याद अगर करते हैं।।
आती है क्यूँ चाहत, के क्यूँ घर करते हैं।।
इस आस से की कल कुछ अच्छा होगा।
हम लोग इक दिन और सफर करते हैं।।
मैंने भी अक्सर नाम लिये बिन लिख्खा।
जज्बात ए दिल बेनाम सफर करते हैं।।
ये आपकी आहट ही कुरेदेगी घर को।
जो छोड़ जाना आप नज़र करतें हैं।।(पेश करना)…
Added by amod shrivastav (bindouri) on March 4, 2019 at 12:30pm — 4 Comments
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |