1222 1222 1222 1222
न जाने बे खयाली में हुआ है क्या बुरा मुझसे
हवादिस पूछने आते हैं अब मेरा पता मुझसे
मुहब्बत हो कि नफरत हो , झिझक कैसी है कहते अब
हया कैसी है डर कैसा , बयाँ कर दे, जता मुझसे
अगर इनआम देना है , कहीं से भी शुरू कर तू
सजा का वक़्त गर आये तो फिर कर इब्तिदा मुझसे
न कह मुझसे जलाऊँ मै चरागों को कहाँ, कैसे
जलाऊँगा , अभी ठहरो , मुख़ालिफ़ है हवा मुझसे
समझ पाते तो अच्छा…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on March 15, 2016 at 10:49am — 5 Comments
1212 1122 1212 22/112
छिपा के बाहों में रक्खा था तीरगी ने मुझे
नज़र उठा के भी देखा न रोशनी ने मुझे
थका थका सा बदन है झुके झुके शाने
परीशाँ कर दिया इस दौरे ज़िन्दगी ने मुझे
गली से उनकी जो निकला तभी जहाँ का हुआ
उसी गली में ही रक्खा था आशिक़ी ने मुझे
नज़र में रूह की सच्चाइयाँ पढ़ूँ कैसे
सिखा दिया है वही इल्म, बेबसी ने मुझें
रही तो चाह मेरी भी, तेरे क़रीब आता
तुझी से कर दिया है…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on March 3, 2016 at 10:00am — 15 Comments
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