निःश्वसन
उच्छ्वसन
सब देह-कर्म, यह अवगुंठन
मोह-पाश के बंधन तुम
बस तुम! तुम ही तुम
व्यक्त हाव
अव्यक्त भाव
नेह-क्लेश, अभाव-विभाव
रूप-गंध के कारण तुम
बस तुम! तुम ही तुम
सम्मुख हो जब
विमुख हुए, तब
मनस-पटल की चेतनता सब
अनुभूति-रेख में केवल तुम
बस तुम! तुम ही तुम
- बृजेश नीरज
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by बृजेश नीरज on March 23, 2014 at 11:30am — 30 Comments
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