Added by Manan Kumar singh on March 24, 2016 at 8:11am — 2 Comments
Added by Manan Kumar singh on March 23, 2016 at 12:25pm — 5 Comments
Added by Manan Kumar singh on March 10, 2016 at 7:56pm — No Comments
Added by Manan Kumar singh on March 7, 2016 at 11:00am — 2 Comments
लड़ रहा वह युद्ध कबसे
पर थका कब?
घिर भी जाता अकेला
व्यूह में बेशस्त्र वह
हारता हिम्मत कहाँ?
लड़ता रहा बेखौफ वह
हाथ में पहिया भले टूटा हुआ
तो क्या हुआ?
हुंकारता दहला रहा वह
शूर वीरें को
जो बिके हर काल में
बेजुबां ही मर गये।
कैद मैं रहता कहाँ
फड़फड़ाता तोड़ता
भी वह कड़ी
रहता सदा ही मुक्त वह
जो कि परिंदा है।
लाख मारो मर नहीं सकता
'अभि' हर रोज जिंदा है।
मौलिक व अप्रकाशित@मनन
Added by Manan Kumar singh on March 3, 2016 at 1:30pm — 4 Comments
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