नीली ओढ़नी
रात की चादर
पसरे तारे
फूटी है भोर
जागते अरमान
आशा किरण
नई रौशनी
उजालों का सफर
बढ़े काफिले
साँझ की बेला
सूरज परछाईं
ढलता दिन
जीवन चक्र
चलता जाता यूँ ही
बीतते दिन
Added by Neelam Upadhyaya on March 31, 2011 at 10:38am — 3 Comments
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