१२१२/ ११२२/ १२१२/ २२
अँधेरों!! “नूर” ने जुगनू अभी उछाला है,
ज़रा सी देर में सूरज निकलने वाला है.
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बिदा करेंगे तो हम ज़ार ज़ार रोयेंगे,
तुम्हारे दर्द को अपना बना के पाला है.
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नज़र भी हाय उन्हीं से लड़ी है महफ़िल में,
कि जिन के नाम का मेरे लबों पे ताला है.
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शजर घनेरे हैं तख़लीक़ में मुसव्विर की
सफ़र की धूप ने उस पर असर ये डाला है.
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निकल के कूचा-ए-जनां से आबरू न गयी,
लुटे हैं सुन के…
Added by Nilesh Shevgaonkar on April 29, 2017 at 7:27pm — 20 Comments
2122/1122/1122/22
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ऐसा लगता है फ़क़त ख़ार सँभाले हुए हैं,
शाख़ें, पतझड़ में भी क़िरदार सँभाले हुए हैं.
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जिस्म क्या है मेरे बचपन की कोई गुल्लक है
ज़ह’न-ओ-दिल आज भी कलदार सँभाले हुए हैं.
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आँधियाँ ऐसी कि सर ही न रहे शानों पर,
और हम ऐसे में दस्तार सँभाले हुए हैं.
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वक़्त वो और था; तब जान से प्यारे थे ख़ुतूत
अब ये लगता है कि बेकार सँभाले हुए हैं.
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टूटी कश्ती का सफ़र बीच में कुछ छोड़ गए,
और कुछ आज भी पतवार सँभाले हुए…
Added by Nilesh Shevgaonkar on April 24, 2017 at 8:59pm — 20 Comments
२१२२/११२२/११२२/२२
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कहीं सजदा किया, पूजा कहीं पत्थर तेरा,
अपने अंदर ही मगर मुझ को मिला घर तेरा.
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मेरी आँखों में उतरना तो उतरना बचकर,
ख़ुद में तूफ़ान छुपाए है..... समंदर तेरा.
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यूँ ही पीछे नहीं चलता है ज़माना तेरे,
नापता रहता है क़द ये भी बराबर तेरा.
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दिल को आदत सी पड़ी है कि ख़ुदा ख़ैर करे,
ढूँढ लाता है कहीं से भी ये नश्तर तेरा.
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तर्क अब इस से ज़ियादा मैं करूँ क्या ख़ुद को
ये अना तेरे हवाले ये मेरा सर ....तेरा.…
Added by Nilesh Shevgaonkar on April 20, 2017 at 10:53am — 14 Comments
नख़्ल-ए-दिल रेगज़ार करना था,
इक तसव्वुर ग़ुबार करना था.
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तेरी मर्ज़ी!!! ये ज़ह’न दिल से कहे,
बस तुझे होशियार करना था.
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वो क़यामत के बाद आये थे
हम को और इंतिज़ार करना था.
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हाल-ए-दिल ख़ाक छुपता चेहरे से
जिस को सब इश्तेहार करना था.
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लुत्फ़ दिल को मिला न ख़ंजर को
कम से कम आर-पार करना था.
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चंद यादें जो दफ़’न करनी थीं
अपने दिल को मज़ार करना था.
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बारहा दुश्मनी!! अरे नादाँ .....
इश्क़ भी बार बार करना…
Added by Nilesh Shevgaonkar on April 18, 2017 at 8:40pm — 13 Comments
2122/1212/22
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जब नज़र से उतर गया कोई,
यूँ लगा मुझ में मर गया कोई.
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इल्म वालों की छाँव जब भी मिली
मेरे अंदर सँवर गया कोई.
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उन के हाथों रची हिना का रँग
मेरी आँखों में भर गया कोई.
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बेवफ़ाई!! ये लफ्ज़ ठीक नहीं,
यूँ कहें!!! बस,…
Added by Nilesh Shevgaonkar on April 16, 2017 at 8:00am — 16 Comments
१२२२/१२२२/१२२२/१२२२
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हमारा साग बांसी है तुम्हारी भाजी ताजी है
जो इस में ऐब ढूँढेगा तो वो आतंकवादी है.
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गजल के पाँव दाबे हैं तभी कुछ सीख पाये हैं
इसे पाखण्ड कहना आप की जर्रानवाजी है.
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तलफ्फुज को लगाओ आग, है ये कौन सी चिड़िया
हमारा राग अपना है हमारी अपनी ढपली है.
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बहर पर क्यूँ कहर ढायें लिखे वो ही जो मन भाये
मगर इतना समझ लें, ये अदब से बेईमानी है.
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शहर भर का जहर पीने के आदी हो चुके हैं…
Added by Nilesh Shevgaonkar on April 13, 2017 at 11:18am — 12 Comments
गा ल गा गा (ललगागा) / लल गागा/ ललगागा / गा गा (ललगा)
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ये तमाशा तो मेरे ज़ह’न के अन्दर निकला,
मैं बशर मैं ही ख़ुदा मैं ही पयम्बर निकला.
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ये ज़मीं चाँद सितारे ये ख़ला.... सारा जहान,
वुसअत-ए-फ़िक्र से मेरी ज़रा कमतर निकला.
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संग-दिल होता जो मैं आप भी कुछ पा जाते,
क्या मेरी राख़ से पिघला हुआ पत्थर निकला? …
Added by Nilesh Shevgaonkar on April 11, 2017 at 7:00pm — 26 Comments
२१२२/२१२२/२१२२/२१२
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इस तरह हर इक गुनह का सामना करना पड़ा,
हश्र में ख़ुद के किये पे तब्सिरा करना पड़ा.
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सुल्ह फिर अपने ही दिल से यूँ हमें करनी पड़ी,
फ़ैसले को टालने का फ़ैसला करना पड़ा.
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क़ामयाबी की ख़ुशी में चीखता है इक मलाल,
सोच कर निकले थे क्या कुछ और क्या करना पड़ा.
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एक मुद्दत से कई चेहरे थे आँखों में असीर,
आँसुओं की शक्ल में सब को रिहा करना पड़ा.
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झूठ के नक्क़ारखाने में बला का शोर है,…
Added by Nilesh Shevgaonkar on April 5, 2017 at 9:16am — 18 Comments
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