गजल-गुप अॅधेंरा, चॉंदनी भी दरबदर
बह्र....2122 2122 212
नींद जब आती नहीं गुल सेज पर,
सो रहे रिक्शे पे घोड़ा बेच कर।
स्वर्ण है या वोट किसको क्या पता,
शोर संसद में वतन की लूट पर।
चापलूसी नीति निशदिन छल रही,
गर्म है बाजार माया धर्म धर।
शोख कमसिन सी कली नित सुर्ख है,
तल्ख हैं अखबार पढ़ कर मित्रवर।
क्या किया है आपने इस देश में,
लुट रही है अस्मिता हर राह पर।
ताख पर जलता दिया जब…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 27, 2014 at 1:57pm — 9 Comments
गजल......
अरकान--2122 2121 212
जिन्दगी की तीव्र गति आवाक है।
सोच कर दिन-रात मति आवाक है।।
बस चुनावी दौर का सुरूर अब,
उड़ रहा मानव नियति आवाक है।
चॉंद छिप कर सोचता वो क्या करे,
बादलों का खौफ रति आवाक है।
पीर के पत्थर पिघल के सो गए,
नग्न पर्वत देख यति आवाक है।
नारि तुलसी-गौतमी औ द्राैपदी,
पूॅूछती हैं प्रश्न पति आवाक है।
घोर कलियुग पाप का आधार जब,
धर्म के पथ पर जयति आवाक…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 3, 2014 at 8:09pm — 6 Comments
गजल.....जमाना धूल-गर्दिश का
बह्र - 1222, 1222, 1222, 1222
इशारों ही इशारों में, इशारे कर रहे हैं हम।
तरफदारी हमारी तो, हजारों मर रहे हैं हम।।
उदारी नीति पावन पर, दिशा हर बार संहारी,
गरीबी भेड़ जैसी बस, कुॅंओं को भर रहे हैं हम।।1
भिड़े हैं शेर-हाथी गर, शिवा-राणा लड़े गॉंधी,
हमें भी देखिये साहब, गधों से डर रहे हैं हम।2
कहानी जब सुनाते हैं, हमें तो नींद आती है,
उड़ा…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 1, 2014 at 10:52am — 15 Comments
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