2122 1212 22 /112
मेरी साँसें रवाँ - दवाँ कर दे
फिर लगे दूर आसमाँ कर दे
प्यासे दोनों तरफ़ हैं , खाई के
है कोई.. ? खाई जो कुआँ कर दे
वो ठिकाना जहाँ उजाला हो
सब की ख़ातिर उसे अयाँ कर दे
दुश्मनी घुट के मर न जाये कहीं
आ मेरे सामने , बयाँ कर दे
ऐ ख़ुदा, क्या नहीं है बस में तिरे
हिन्दी- उर्दू को एक जाँ कर दे
कैसे देखूँगा मै ये जंग ए अदब
मेरी आँखे धुआँ धुआँ कर…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on April 23, 2017 at 11:11am — 23 Comments
22 22 22 22 22 22 ( बहर ए मीर )
कटे हाथ लेकर बे चारे घूम रहे हैं
मांग रहे हैं, कहीं सहारे, घूम रहे हैं
कर्मों का लेखा उनका मत बाहर आये
इसी जुगत में डर के मारे, घूम रहे हैं
हाथों मे पत्थर हैं जिनके, उनके पीछे
छिपे हुये अब भी हत्यारे घूम रहे हैं
अँधियारा अब भी फैला है आंगन आंगन
क्यों ये सूरज, चंदा, तारे घूम रहे हैं
शब्द भटक जाते हैं उनके, अर्थ हीन हो
जिनके घर के अब चौबारे घूम रहे…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on April 13, 2017 at 11:01am — 9 Comments
मैं , ओ बी ओ हूँ ...
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मैं , ओ बी ओ हूँ ...
मेरी छाया में हर विधा प्राण पाती रही ..
कितने ही शून्य आये
रहे
सीखे
और शून्य से अनगिनत हो गये
फर्श अर्श हुये
पर, मैं नहीं बदली , वही हूँ
वही रहूँगी
यही तो तय किया था मैंने
लेकिन, क्या ये सच नहीं
कि साज़िन्दे अगर सो जायें
बेसुरे हो ही जाते हैं गवैये ?
कितने भी सुरीले हों..
आज
मुझे सोचना पड़ रहा है ..
शब्द…
Added by गिरिराज भंडारी on April 13, 2017 at 6:30am — 2 Comments
2122 2122 212
धारणायें हों मुखर, तो चुप रहें
सच न पाये जब डगर, तो चुप रहें
शब्द ज़िद्दी और अड़ियल जब लगें
और ढूँढें, अर्थ अगर तो चुप रहें
जब धरा भी दूर हो आकाश भी
आप लटके हों अधर, तो चुप रहें
कृष्ण हो जाये किशन, स्वीकार हो
शह्र पर जब हो समर तो चुप रहें
सीखने वालों पे यारों पिल पड़ें
जब ग़लत हो नामवर, तो चुप रहें
तेल औ’र पानी मिलाने के लिये
कोशिशें देखें…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on April 9, 2017 at 8:00am — 24 Comments
2122 2122 2122 212
कट गये सर वो मगर शमशीर को समझे नहीं
घर जला, पर आग की तासीर को समझे नहीं
ख़्वाब ए आज़ादी कभी ताबीर तक पहुँचे भी क्यूँ
सबको समझे वो मगर जंजीर को समझे नहीं
वो मुसव्विर पर सभी तुहमत लगाने लग गये
जो उभरते मुल्क़ की तस्वीर को समझे नहीं
मजहबों में बाँट, वो नफरत दिलों में बो गये
और हम भी उनकी इस तदबीर को समझे नहीं
उनका दावा है, वो चार: दर्द का करते रहे
हमको शिकवा है…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on April 6, 2017 at 9:00am — 23 Comments
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