गुमनाम है
बड़ा बदनाम है
हाँ गुलाम है.
....................
रिश्ते नाते हैं
बड़ा ही रुलाते हैं.
टूट जाते हैं.
..................
वृक्ष रोते हैं
जनता हंसती है,
कैसी बस्ती है.
.......................
सुखा कंठ है,
मनवा उदास है,
कैसी प्यास है.
.......................
तू ही जीत है
तुझसे ही प्रीत है,
तू ही मीत है.
.....................
भ्रष्टाचार है,
ठोस जनाधार है,
सरकार है.…
Added by Ashok Kumar Raktale on April 30, 2012 at 6:30pm — 18 Comments
तम में अपनी तुणीर बाँध कर जब ये चलते हैं,
मेरे ह्रदय मन आँगन से रोज निकलते हैं,
एक बाण और कई लक्ष्य दें मन को छलते हैं,
मानव मन के इक कोने में सपने पलते हैं,
सुप्त पड़ी काया में तो निशदिन खेल ये करते हैं,
श्वेतश्याम से आकर मन में रंग ये भरते हैं,
कई बार मुरझाये मन में यह उजियारा करते हैं,
और मानव के जगने तक नैनों में ठहरते हैं,
कभी पूर्णता पा जाएँ सोच कर मन में टहलते हैं,
मानव मन के इक कोने में सपने पलते हैं,
छूकर मानव के मन…
Added by Ashok Kumar Raktale on April 9, 2012 at 6:43am — 2 Comments
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