1212--1122--1212--112
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ख़ुशी का पल तो मयस्सर नहीं, हैं दर्द हज़ार
हमारे हिस्से में क्यों है बस इंतिज़ारे-बहार
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कि रफ़्ता रफ़्ता थकावट बदन में आएगी
उतर ही जाएगा आख़िर में ज़िन्दगी का ख़ुमार
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मिलेगी आख़िरी ख़ाने में मौत ही सबको
बिसाते-दह्र पे पैदल हो या हो फिर वो सवार
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इधर जनाज़ा किसी का बस उठने वाला है
उधर दुल्हन की चले पालकी उठाए कहार
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ग़मों की धूप भी हमको सुखों की छाँव लगे
हमारा नाम भी कर लो कलन्दरों में…
Added by दिनेश कुमार on May 30, 2018 at 6:00pm — 5 Comments
2122---1212---22
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जो भी सोचूँ, उसी पे निर्भर है
मेरी दुनिया तो मेरे भीतर है
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इक फ़रिश्ता है मेहरबाँ मुझ पर
स्वर्ग से ख़ूब-तर मेरा घर है
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जिसमें जज़्बा है काम करने का
कामयाबी उसे मयस्सर है
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जीत कैसे मिली, है बेमानी
जो भी जीता, वही सिकन्दर है
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कोई क़तरा भी भीक में माँगे
और हासिल किसी को सागर है
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ज़ह्र-आलूदा इन हवाओं में
साँस लेना भी कितना दूभर है
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हाँ, ये जादूगरी है लफ़्ज़ों की
( हाँ,…
Added by दिनेश कुमार on May 21, 2018 at 10:00am — 7 Comments
1212--1122--1212--22
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मैं अपने काम अगर वक़्त पर नहीं करता
तो कामयाबी का पर्वत भी सर नहीं करता
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हसीन ख़्वाब अगर दिल में घर नहीं करता
तवील रात से मैं दर-गुज़र नहीं करता
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हरेक मोड़ पे ख़ुशियों तो कम हैं,दर्द बहुत
कहानी वो मेरी क्यों मुख़्तसर नहीं करता
..
सिखा दिया है मुझे ग़म ने ज़िन्दगी का हुनर
किसी भी हाल, मैं अब आँख तर नहीं करता
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मैं अपने अज़्म की पतवार साथ रखता हूँ
मेरे सफ़ीने पे तूफ़ाँ असर नहीं करता
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ग़ुरूर साथ…
Added by दिनेश कुमार on May 20, 2018 at 6:00pm — 3 Comments
2122--1122--1122--22
बाद मरने के भी दुनिया में हो चर्चा मेरा
ऐसी शोहरत की बुलन्दी हो ठिकाना मेरा
मैं हूँ इक प्रेम पुजारी ऐ मेरी जाने-हयात
तू ही मन्दिर, तू कलीसा, तू ही का'बा मेरा
मेरे बेटे की निगाहों में हैं कुछ ख़्वाब मेरे
ज़िन्दगी उसकी है जीने का सहारा मेरा
मौत भी चैन से आती है कहाँ इन्सां को
ज़ेह्न में गूँजता ही रहता है मेरा मेरा
अब भी रातों को मेरी नींद उचट जाती है
आह इक चाँद को छूने का वो सपना मेरा
अनकही बात मेरी क्या वो…
ContinueAdded by दिनेश कुमार on May 17, 2018 at 5:31am — 3 Comments
1212---1122--1212--22
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कठिन, सरल का कोई मसअला नहीं होता
अगर तू ठान ले दिल में तो क्या नहीं होता
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अगर हो अज़्म तो पत्थर में छेद होता है
हुनर मगर ये सभी को अता नहीं होता
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हमारे कर्म से प्रारब्ध भी बदलता है
नसीब अपना कभी तयशुदा नहीं होता
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ये तज्रिबा है हमारा मुशाहिदा भी है
अमीर-ए-शह्र किसी का सगा नहीं होता
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सितमगरों के इशारों पे खेल होता है
अदालतों में कोई फ़ैसला नहीं होता
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जुड़ा ही रहता है ममता…
Added by दिनेश कुमार on May 6, 2018 at 9:00am — 8 Comments
122----122----122----122
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जो आँखों से दिखती नहीं है सभी को
मैं क्यों ढूँढ़ता हूँ उसी रौशनी को
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जो समझे मेरे दिल की सब अन-कही को
मैं क्या नाम दूँ ऐसे इक अजनबी को
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सुधारेगा कौन आपके बिन मुझे अब
मुझे डाँटने का था हक़ आप ही को
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भले रोज़मर्रा में हों मुश्किलें ख़ूब
बहुत प्यार करता हूँ मैं ज़िंदगी को
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कसौटी पे परखे जो किरदार अपना
भला इतनी फ़ुर्सत कहाँ है किसी को
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तुम्हें नूरे-जाँ भी दिखेगा इसी में
कभी…
Added by दिनेश कुमार on May 5, 2018 at 4:46am — 11 Comments
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