2122 2122 2122 212
हो बड़े मगरूर अपनी जीत मेरी हार में
हम लुटा देते हैं हस्ती प्रेम के व्यापार में
भूख के चर्चे हुये हैं मुफलिसी की बात है
वांच ली सारी किताबें क्या रखा है सार में
गीत बैठे तक रहे हैं झनझनाहट तार की
क्या जुगलबंदी हुई है राग सुर औ प्यार में
बाँध कर सिर पे कफ़न हैं चल पड़े कुछ…
ContinueAdded by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 15, 2016 at 8:30pm — 10 Comments
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