ग़ज़ल (गुलशन के लिए )
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2122 --2122 --212
जो चुने तिनके नशेमन के लिए ।
जल गए वह रात गुलशन के लिए ।
ख़ार मुरझाते नहीं गुल की तरह
क्यों नहीं चाहूँ मैं दामन के लिए ।
उनको ही शायर समझता है जहाँ
जिन के ईमां बिक गए धन के लिए ।
रास्ते तन्हा कभी कटते नहीं
लाज़मी साथी है जीवन के लिए ।
क्या पता कब दिल पे कर जाए असर
मैं वफ़ा रखता हूँ दुश्मन के लिए…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on May 16, 2016 at 9:28pm — 6 Comments
ग़ज़ल (उल्फत का रंग है )
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221 --2121 --1221 ---212
ऐसा लगे है चढ़ गया उल्फत का रंग है ।
जो कल मेरे ख़िलाफ़ था वह आज संग है ।
वह मेरे पास बैठ गए सब को छोड़ के
यूँ हर कोई न देख के महफ़िल में दंग है ।
तरके वफ़ा का मश्वरा मत दीजिये हमें
सब जानते हैं आपका ये सिर्फ ढंग है ।
जिस दिन से जायदाद गए बाप छोड़ कर
घर तब से बन गया मेरा मैदाने जंग है ।
मैं एक क़दम…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on May 1, 2016 at 9:37am — 16 Comments
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