रात अंधड़ में
छितराए फूस के छप्पर को
करना है दुरस्त
लेकिन समय कहाँ
अभी तो जाना है काम पर
फिरसे फूल आये पेट में
कुलबुला रहा है जीव
अनमनी सी कराह रही घरवाली
रांध नही पाती भात...
भूखे पेट पैडल मारता भूरा
टुटही साइकिल खींच रहा
ससुरी चैन साईकिल की
काहे उतरती बार-बार
भूरा बेबस-लाचार,
ठीकेदार का मुंशी भगा देगा उसे
जो देर से पहुंचा वो...
लड़ भी तो नही सकता
भगा दिया गया तो
डूब…
Added by anwar suhail on May 2, 2014 at 9:37am — 9 Comments
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