२१२२/१२१२/२२ (११२)
या ख़ुदा ऐसी ला-मकानी दे
अब ख़लाओं की मेज़बानी दे.
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कितना आवारा हो गया हूँ मैं
ज़िन्दगी को कोई मआनी दे.
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यूँ न भटका मुझे सराबों में
अपने होने की कुछ निशानी दे.
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सच मेरा कोई मानता ही नहीं
सच लगे ऐसी इक कहानी दे.
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मेरी ग़ज़लों की क्यारी सूख गयी
मेरी ग़ज़लों को थोडा पानी दे.
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“नूर” को फ़िक्र दे नई मौला
पर नज़र उस को तू पुरानी दे.
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निलेश "नूर"
मौलिक / अप्रकाशित
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 31, 2015 at 9:30pm — 27 Comments
मात्रिक बहर 22/22/22/22/22/22/22/2
क्या क्या सपनें बुन लेते थे छोटी छोटी बातों में
क़िस्मत ने कुछ और लिखा था लेकिन अपने हाथों में.
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कैसे कैसे खेल थे जिन में बचपन उलझा रहता था
मोटे मोटे आँसू थे उन सच्ची झूठी मातों में.
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कितने प्यारे दिन थे जब हम खोए खोए रहते थे
लड़ते भिड़ते प्यार जताते खट्टी मीठी बातों में.
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एक ये मौसम, ख़ुश्क हवा ने दिल में डेरा डाला है
एक वो ऋत थी, साथ तुम्हारे भीगे थे बरसातों में.
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एक समय तो…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 28, 2015 at 10:00pm — 20 Comments
२१२२/१२१२/२२
कितनी सादा-दिली से मिलता है
जब समुन्दर नदी से मिलता है.
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इक नयी कायनात पनपेगी
कोई भौंरा कली से मिलता है.
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रब्त इस बात पर टिके हैं अब
कोई कितना किसी से मिलता है.
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हर किसी से यही वो कहते हैं
दिल मेरा आप ही से मिलता है.
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अब सुमंदर में भी है बे-चैनी
क़तरा अपनी ख़ुदी से मिलता है.
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सुब’ह से पहले जुगनू यूँ चमका
गोया लम्हा सदी से मिलता है.
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मौत से क्या पता…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 26, 2015 at 9:21pm — 34 Comments
गागा ल/गा लगा/लल गागा/ लगा लगा
कुछ और मुझ में जीने की हसरत बढ़ा गया
वादा किया था आने का, सचमुच में आ गया.
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इक रोज़ मुझ से कहते हुए “ख़ूब लगते हो”
वो अपनी आँख का मुझे काजल लगा गया.
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काफ़िर अगर जो मैं न बनूँ और क्या बनूँ ?
दिल के हरम को छोड़ के मेरा ख़ुदा गया.
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उट्ठा मैं हडबड़ा के टटोला इधर उधर,
ख़्वाबों में कौन आया, जगाया, चला गया.
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पत्ते झडे जो पक के करे उन का सोग कौन
अफ़सोस है खिज़ा को... कि पत्ता हरा…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 24, 2015 at 1:30pm — 22 Comments
२१२२/१२१२/२२ (११२)
जब भी लफ़्ज़ों का काफ़िला निकले
ये दुआ है, फ़कत दुआ निकले.
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कोई ऐसा भी फ़लसफ़ा निकले
ख़ामुशी का भी तर्जुमा निकले.
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सुब’ह ने फिर से खोल ली आँखें
देखिये आज क्या नया निकले.
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हम कि मंज़िल जिसे समझते हैं
क्या पता वो भी रास्ता निकले.
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लुत्फ़ जीने का कुछ रहा ही नहीं
क्या हो गर मौत बे-मज़ा निकले?
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रोज़ चलता हूँ मैं, मेरी जानिब
रोज़ ख़ुद से ही फ़ासला निकले.
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गर है कामिल^,…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 17, 2015 at 5:42pm — 25 Comments
गागा लगा लगा/ लल/ गागा लगा लगा
आवारगी ने मुझ को क़लन्दर बना दिया
कुछ आईनों ने धोखे से पत्थर बना दिया.
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जो लज़्ज़तें थीं हार में जाती रहीं सभी
सब जीतने की लत ने सिकंदर बना दिया.
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नाज़ुक से उसने हाथ रखे धडकनों पे जब
तपता सा रेगज़ार समुन्दर बना दिया.
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एहसास सब समेट लिए रुख्सती के वक़्त
दीवानगी-ए-शौक़ ने शायर बना दिया.
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जो उस की राह पे चले मंज़िल उन्हें मिले
बाक़ी तो बस सफ़र ही…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 14, 2015 at 11:29am — 35 Comments
22/22/22/22/22/2 (सभी कॉम्बिनेशन्स)
दिल के ओहदेदारों का अब क्या करिये.
बचपन के उन यारों का अब क्या करिये.
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तुम कब तुम थे- मैं कब मैं, वो कहानी थी
उन मुर्दा क़िरदारों का अब क्या करिये.
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राजमहल था जिस्म, ये दिल था शाह कभी
इन वीरां दरबारों का अब क्या करिये.
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मान गए वो आख़िर में जब बात अपनी
पहले के इन्कारों का अब क्या करिये.
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उसके क़दमों पे धर आए सर ही जब
फिर महँगी दस्तारों का अब क्या करिये.…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 12, 2015 at 10:30am — 26 Comments
२१२२/ २१२२/ २१२२/ २१२
.दिल में गर तूफां उठे तो मुस्कुराना है कठिन
याद करना है सरल पर भूल जाना है कठिन.
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यादों के झौंके पे झूले झूलना कुछ और है,
यादों के अंधड़ को लेकिन रोक पाना है कठिन.
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हिचकियाँ आई यूँ ही होंगी तुझे नादान दिल!
भूलने वालों को तेरी याद आना है कठिन.
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आड़ दो हाथों की पाकर सर उठा लेती है लौ,
हाँ खुली छत पर दीये का जगमगाना है कठिन.
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कैसे कैसे लोग अब बसने लगे हैं शह्र में
अब लगे है यां भी अपना…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 6, 2015 at 4:00pm — 22 Comments
२१२२/१२१२/२२ (११२)
वह’म है वो नज़र नहीं रखता
आसमां क्या ख़बर नहीं रखता.
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वो मकीं सब के दिल में रहता है
आप कहते हैं घर नहीं रखता.
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है मुअय्यन हर एक काम उसका
कुछ इधर का उधर नहीं रखता.
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अपने दर पे बुलाना चाहे अगर
तब खुला कोई दर नहीं रखता.
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ख़ामुशी अर्श तक पहुँचती है
लफ्ज़ ऐसा असर नहीं रखता.
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तेरी हर साँस साँस मुखबिर है
तू ही ख़ुद पे नज़र नहीं रखता.
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दिल ही दिल में हमेशा घुटता है…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 5, 2015 at 8:30am — 20 Comments
२१२/ २१२/ २१२/ २१२// २१२/ २१२/ २१२/ २१२
हर तरफ भागती दौडती ज़िन्दगी बेसबब घूमती इक घड़ी की तरह
हमसफ़र है वही और राहें वही, मंज़िले हैं मगर अजनबी की तरह.
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आज के बीज से उगते कल के लिए मुझ को जाना पड़ेगा तुम्हे छोड़कर
तुम भी गुमसुम सी हो मैं भी ख़ामोश हूँ लम्हा लम्हा लगे है सदी की तरह
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श्याम की संगिनी बाँसुरी ही रही, प्रीत की रीत भी आज तक है यही
कर्म की राह ने प्रेम को तज दिया, राधिका रह गयी बावरी की तरह.
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ये अलग बात है उनसे बिछड़े हुए…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 2, 2015 at 10:00pm — 36 Comments
२१२२/१२१२/२२ (११२)
याद हम को तभी ख़ुदा आया
जब कोई सख्त मरहला आया
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उम्र भर सोचते रहे तुझ को
अब कहीं जा के सोचना आया
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और करता भी क्या उसे रखकर
साथ ख़त ही के, दिल बहा आया.
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डूबने कब दिया अनाओं ने
तर्क करते ही डूबना आया.
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चाहता था सँवरना ताजमहल
मैं वहाँ आईना लगा आया.
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तू उफ़क़ अपना देख ले आकर
मैं तेरा आसमां झुका आया.
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सोचता है अगरचे कब्र में है
‘नूर’ दुनिया में ख़्वाह-मख़ाह…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 2, 2015 at 8:00am — 25 Comments
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