2122 2122 2122
तुम ग़ज़ल मेरी मुहब्बत में पगी हो
फूल, कलियाँ,वल्लरी सी ताज़गी हो
तुमको पाकर ये मकाँ घर हो गया है
तुम मेरी सम्पूर्णता की बानगी हो
इन तेरी साँसों से महके प्रेम उपवन
रूप यौवन में बसी इक सादगी हो
पास आकर भी नहीं तुम पास मेरे
दूरियों से क्यूँ न फिर नाराज़गी हो
बिन तेरे ये दिल धड़कना छोड़ देता
आज कहता हूँ मेरी तुम जिंदगी हो
प्यार पाकर दिल नहीं भरता ये…
ContinueAdded by rajesh kumari on May 12, 2014 at 10:00am — 41 Comments
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