इंसान का कद
इंसान का कद इतना ऊँचा होगया
कि इंसानियत उसमें अब दिखती नहीं
दिल इतना छोटा होगया कि
भावनाएं उसमें टिक पाती नहीं
जिन्दगी कागज़ के फूलों सी
सजी संवरी दिखती तो है
पर प्रेम प्यार और संवेदनाओ
की कहीं खुशबू नहीं
चकाचौंध भरी दुनिया की इस भीड़ में
इतना आगे निकल गया कि
अपनों के आँसू उसे अब दिखते नहीं
आसमां को छूने की जिद्द में
पैर ज़मी पर टिकते नहीं
सिवा अपने सब छोटे-छोटे
कीड़े मकोड़े से…
ContinueAdded by Maheshwari Kaneri on May 14, 2014 at 5:40pm — 10 Comments
गौरैया
माँ ! आँगन में अपने
अब क्यों नहीं आती गौरैया
शाम सवेरे चीं चीं करती
अब क्यों नहीं गाती गौरैया
फुदक- फुदक कर चुग्गा चुगती
पास जाओ तो उड़ जाती
कभी खिड़की, कभी मुंडेर पर
अब क्यों नहीं दिखती गौरैया
माँ बतला दो मुझ को
कहाँ खोगई गौरैया ?
विकास के इस दौर में,बेटा !
मानव ने देखा स्वार्थ सुनेरा
काटे पेड़ और जंगल सारे
और छीना पंछी का रैन बसेरा
रुठ गई हम से अब हरियाली
पत्थर का…
ContinueAdded by Maheshwari Kaneri on May 3, 2014 at 7:39pm — 10 Comments
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