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सूबे सिंह सुजान's Blog – May 2013 Archive (2)

ग़ज़ल- जिन्दगी तुमसे लड नहीं पाया।।।

जिन्दगी तुमसे लड नहीं पाया ।

हमने आख़िर में ख़ुद को समझाया।।

कुछ नहीं आदमी के हाथों में,

मरते-मरते ये सबने समझाया।।

जिन्दगी भर गरूर रहता है,

मौत के वक़्त ये नहीं पाया।।

जिन्दगी हर कसौटी पर जी,ली,

इसलिये राम,राम कहलाया।।

आदमी लालची ही होता है,

भूल जाता है राम की माया।।

मैं बहकता रहा हूँ उतना ही,

आपने मुझको जितना बहकाया।।

रात से हमको मिलती शीतलता,

रात ने शांत रहना…

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Added by सूबे सिंह सुजान on May 31, 2013 at 11:00pm — 19 Comments

तरही ग़ज़ल--आपसे मिलकर ये जाना दोस्ती क्य चीज़ है।

आपसे मिल कर ये जाना दोस्ती क्या चीज़ है

अब मुझे महसूस होता है,खुशी क्या चीज़ है।।

ख़ून  बेमक़सद  बहाये, आदमी क्या चीज़ है,

आज तक समझा नहीं वो,जिन्दगी क्या चीज़ है।

धूप आई,  बर्फ पिघली, पानी बनकर बह गई,

ये हिमालय जानता है, बेबसी क्या चीज़ है।

कैसे सूरज एक पल में जादू सा कर जाता है,

रात मुझसे पूछती है रोशनी क्या चीज़ है।

अपने-आपे में नहीं है,अब मेरा अपना शरीर,

सोचता हूँ आज मैं, ये आशिकी़ क्या चीज़…

Continue

Added by सूबे सिंह सुजान on May 14, 2013 at 12:39am — 18 Comments

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