याद आयेगा हमें .....
जान ले लेगा हमारी मुस्कुराना आपका
इस गली का हर बशर अब है दिवाना आपका
बारिशों में बाम पर वो भीगती अगड़ाइयाँ
आँख से जाता नहीं वो रुख छुपाना आपका
हम गली के मोड़ पर हैं आज तक ठहरे हुए
सोचते हैं हो गया गुम क्यों ठिकाना आपका
दिल लगा कर तोड़ना तासीर है ये आपकी
दूर जाने का नहीं अच्छा बहाना आपका
वो गिराना खिड़कियों से पर्चियाँ इकरार की
याद आयेगा हमें सदियों जमाना …
Added by Sushil Sarna on May 29, 2022 at 1:29pm — No Comments
रोला छंद. . . .
विगत पलों की याद, हृदय को लगे सुहानी।
छलक-छलक ये नैन, गाल पर लिखें कहानी ।
मौन छुअन संवाद, देह पर विचरण करते ।
सुधियों के सब रंग, रिक्त अम्बर में भरते ।
*=*=*=*
तड़प- तड़प के रात, गुजारे प्रेम दिवानी ।
विरहन की ये पीर, जगत ने कब है जानी ।
मौसम गुजरे साथ, प्यार के गये जमाने ।
रह - रह आते याद, रात के वो अफसाने ।
सुशील सरना / 28-5-22
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on May 28, 2022 at 2:23pm — No Comments
आँधियों से क्या गिला .....
2122 2122 2122 212
रूठ जाएँ मंजिलें तो रहबरों से क्या गिला
हो समन्दर बेवफ़ा तो कश्तियों से क्या गिला
टूट जाए घर किसी का ग़र हवाओं से कहीं
वक्त ही ग़र हो बुरा तो आँधियों से क्या गिला
याद आया वो शज़र जिस पर गिरी थी बारिशें
आज भीगे हम अकेले बारिशों से क्या गिला
ज़ख्म यादों के न जाने आज क्यूँ रिसने लगे
दर्द के हों जलजले तो आँसुओं से क्या…
Added by Sushil Sarna on May 24, 2022 at 4:00pm — 10 Comments
सिन्दूर (क्षणिकाएँ ).....
सजावट की
नहीं
निभाने की चीज है
सिन्दूर
******
निभाने की नहीं
आजकल
सजावट की चीज है
सिन्दूर
******
छीन लिया है
अर्थ
सिन्दूर का
वर्तमान के
बदले परिवेश ने
******
प्रतीक है
दो साँसों के समर्पण की
अभिव्यक्ति का
सिन्दूर
******
आरम्भ है
एक विश्वास के
उदय होने का
माथे पर अलंकृत
चुटकी भर
सिन्दूर
सुशील सरना /…
ContinueAdded by Sushil Sarna on May 23, 2022 at 10:53am — 2 Comments
फिर किसी के वास्ते ......
क्यूँ दिलाएं हम यकीं दिल को किसी के वास्ते ।
हो गया दिल आज गमगीं फिर किसी के वास्ते ।
था बसाया घर कभी हमने किसी के ख़्वाब में ,
छोड़ दी हमने ज़मीं वो फिर किसी के वास्ते ।
मर मिटा था दिल कभी जो इक हसीं के नूर पर ,
तोड़ आए दिल वहीं वो फिर किसी के वास्ते ।
दे गया महबूब मेरा मुझ को जीने की सज़ा ,
आज क्यूँ जाने हज़ीं है दिल किसी के वास्ते ।
वो तसव्वुर में हमारे बस गई कुछ इस तरह…
ContinueAdded by Sushil Sarna on May 19, 2022 at 2:12pm — 3 Comments
गजल- ज़ुल्फ की जंजीर से ......
2122 2122 2122 212
आश्ना होते अगर हम हुस्न की तासीर से
दिल लगाते हम भला क्यों ज़ुल्फ़ की ज़ंजीर से
खा रहे थे लाख क़समें जो हमारे प्यार की
दे गए वो दर्द लाखों इक नज़र के तीर से
हमसफ़र बन कर चले वो रास्ते में छोड़ कर
भर गए झोली हमारी ग़र्द की जागीर से
मंज़िलों के पास आ के दूर मंज़िंलें हो गई
क्या गिला शिकवा करें हम धड़कनों के पीर से
बाद मुद्दत के मिले…
ContinueAdded by Sushil Sarna on May 13, 2022 at 9:00pm — 8 Comments
बुझते नहीं अलाव .....(दोहा गज़ल )
मौन प्रीत के हो गए, अंकित मन में भाव ।
इन भावों के उम्र भर, बुझते नहीं अलाव ।।
साँसों को मिलती नहीं, जब तक प्रीत की साँस,
रिसते रहते ह्रदय में, मौन प्रीत के घाव ।
आँखों को देती रहीं , आँखें ये संदेश ,
दूर किनारा है बहुत , कागज की है नाव ।
अजब अगन है प्रीत की, अजब प्रीत की रीत ,
नैन कोर से याद के , होते रहते स्राव ।
ठहर गया है वक्त भी…
ContinueAdded by Sushil Sarna on May 11, 2022 at 11:30am — 10 Comments
दोहा मुक्तक.....
अपने कृत्यों से कभी, देना मत संताप ।
माँ के चरणों में कटें, जन्म- जन्म के पाप ।
फर्ज निभाना दूध का , हरना हर तकलीफ -
बेटे को आशीष से, माँ के मिले प्रताप ।
* * * *
भूले से करना नहीं, माता का अपमान ।
देना उसके त्याग को, सेवा से सम्मान ।
मूरत है ये ईश की, ये करुणा की धार -
माँ के चरणों में सदा, सुखी रहे सन्तान ।
सुशील सरना / 10-5-22
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on May 10, 2022 at 8:12pm — 5 Comments
मुक्तक
आधार छंद - मनोरम
प्यार का इजहार लेकर ।
आस का अंबार लेकर ।
दे रहा आवाज कोई -
श्वास का शृंगार लेकर ।
***
प्रीत का संसार देकर ।
मौन का आधार देकर ।
छल गया विश्वास कोई -
स्पर्श का अंगार देकर ।
***
ख्वाब जो साकार होते ।
दर्द क्यों गुलज़ार होते ।
तिश्नगी को जीत लेते -
आप का हम प्यार होते ।
सुशील…
ContinueAdded by Sushil Sarna on May 6, 2022 at 2:18pm — 4 Comments
दोहा पंचक ....
मन में मदिरा पाप की, तन व्यसनों का धाम ।
मानव का चोला करे, मानव को बदनाम ।।
छोड़ो भी अब रूठना, छोड़ो भी तकरार ।
देखे थे जो आपके , स्वप्न करो साकार ।।
लुप्त हुई संवेदना , मिटा खून का प्यार ।
रिश्तों में गुंजित हुई , बंटवारे की रार ।।
दिख जाएगी देख तू , तुझको अपनी भूल ।
मन के दर्पण से हटा , जमी स्वार्थ की धूल ।।
भेद बढ़ाती प्यार में, बेमतलब की रार ।
खो न दें कहीं रार में, जीवन का…
Added by Sushil Sarna on May 3, 2022 at 11:58am — 4 Comments
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