२२१/२१२१/१२२१/२१२
करने को नित्य पाप जो गंगा नहायेंगे
हम से अधिक न यार कभी पुण्य पायेंगे।१।
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तन के धुलेंगे पाप न पावन जो मन हुआ
अंतस में ग्लानि होगी तो गंगा को आयेंगे।२।
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कोसेेंगे एक दिन तो स्वयं अपने आप को
अपनी नजर से बोलिए क्या क्या छिपायेंगे।३।
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हम को भले ही भाव न तुम दो अभी मगर
घन्टी बजा कलम से तो हम ही जगायेंगे।४।
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जिनको शऊर आया न दीपक जलाने का
कहते हैं रोशनी को वो सूरज उगायेंगे।५।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 31, 2021 at 10:00am — 8 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
कोई बिका तो लाया है कोई खरीद कर
दुनिया में आज हो रही शादी खरीद कर।१।
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हम हर गली या चौक पे चर्चा में व्यस्त हैं
लाला चलाता देश है खादी खरीद कर।२।
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पाया अधिक तो हो गया दुश्मन की ओर ही
किसका हुआ वकील है वादी खरीद कर।३।
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रखता बचा के कौन से जीवन के हेतु वो
बच्चों को लोभी देता न टाफी खरीद कर।४।
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खुद खाके भूख माँ ने खिलाया था कौर इक
कमतर उसे जो दें भी तो रोटी खरीद कर।५।
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कर्मों से जो…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 30, 2021 at 10:05am — 4 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
मीठी सी बात कर के लुभाने का शुक्रिया
फिर गीत ये विकास के गाने का शुक्रिया।१।
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हमको दुखों से एक भी शिकवा नहीं भले
होते हैं सुख के दिन ये बताने का शुक्रिया।२।
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वादे सियासती ही सही हम को भा गये
फिर से दिलों में आस जगाने का शुक्रिया।३।
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खातिर भले ही वोट की आये हो गाँव तक
यूँ पाँच साल बाद भी आने का शुक्रिया।४।
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पथरा गयीं थी देखते पथ ये तुम्हारा जो
आँसू हमारी आँखों में लाने का शुक्रिया।५।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 27, 2021 at 8:15pm — 6 Comments
जहाँ पर रोशनी होगी
वहीं पर तीरगी होगी।१।
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गले तो मौत के लग लें
खफ़ा पर जिन्दगी होगी।२।
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निशा आयेगी पहलू में
किरण जब सो रही होगी।३।
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उबासी छोड़ दी उस ने
यहाँ कब ताजगी होगी।४।
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धुएँ के साथ विष घुलता
हवा भी दिलजली होगी।५।
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कली जो खिलने बैठी है
मुहब्बत में पगी होगी।६।
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न आया साँझ को बेटा
निशा भर माँ जगी होगी।७।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 18, 2021 at 7:36am — 3 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
नौ माह जिसने कोख में पाला सँभाल कर
आये जो गोद में तो उछाला सँभाल कर।१।
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कोई बुरी निगाह न पलभर असर करे
काजल हमारी आँखों में डाला सँभाल कर।२।
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बरतन घरों के माज के पाया जहाँ कहीं
लायी बचा के आधा निवाला सँभाल कर।३।
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सोये अगर तो हाल भी चुप के से जानने
हाथों का रक्खा रोज ही आला सँभाल कर।४।
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माँ ही थी जिसने प्यार से सँस्कार दे के यूँ
घर को बनाया एक शिवाला सँभाल कर।५।
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सुख दुख में राह देता…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 9, 2021 at 6:59am — 10 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
किस्मत कहें न कैसे सँवारी गयी बहुत
हर दिन नजर हमारी उतारी गयी बहुत।१।
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जो पेड़ शूल वाले थे मट्ठे से सींचकर
पत्थर को चोट फूल से मारी गयी बहुत।२।
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भूले से अपनी ओर न आँखें उठाए वो
जो शय बहुत बुरी थी दुलारी गयी बहुत।३।
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धनवान मौका मार के ऊँचा चढ़ा मगर
निर्धन के हाथ आ के भी बारी गयी बहुत।४।
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बेटी का ब्याह शान से करने को बिक गये
ऐसे भी बाजी मान की …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 1, 2021 at 9:25pm — No Comments
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