ग़ज़ल ( हादसा घट गया )
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212 -212 -212
यक बयक हादसा घट गया ।
राहे उल्फत से वह हट गया ।
ज़ुल्म में ही था शामिल करम
था गुमाँ मुझको वह पट गया ।
जाऊं सदक़े सियासत तेरे
हर कोई क़ौम में बट गया ।
नाव भी डगमगाने लगी
हो रहा है गुमाँ तट गया ।
ऐसा लगता है फ़हरिस्त से
नाम शायद मेरा कट गया ।
खाये पत्थर गली में तेरी
सर मेरा यूँ नहीं फट गया…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on June 15, 2016 at 7:33am — 21 Comments
ग़ज़ल ( आँखों से निकलते हैं )
१२२२ -१२२२ -१२२२ -१२२२
तड़प कर जो गमे जाने जहाँ दिल में पिघलते हैं ।
वही तो अश्क बन कर मेरी आँखों से निकलते हैं ।
क़यादत पर मेरी यह सोच के उंगली उठाना तुम
मेरे पीछे ही अपनों की तरह अग्यार चलते हैं ।
अगर देना नहीं था साथ तो पहले बता देते
अचानक कबले मंज़िल किस लिए रस्ता बदलते हैं ।
मुहब्बत करने वालों को है कब परवाह दुनिया की
जहाँ भी शमआ जलती है वहां परवाने जलते हैं…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on June 3, 2016 at 7:58pm — 6 Comments
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