ले चल अपने संग हमराही, उन भूली बिसरी राहों में
जहां बिताते थे कुछ लम्हे हम एक दूजे की बाहों में
चल चले उन गलियों में फिर थाम कर एक दूजे का हाथ
क्या पता मिल जाए हमको फिर वो जुगनू की बारात
जहां चाँद की मद्धिम बुँदे वादी से छन कर आती…
ContinueAdded by AMAN SINHA on June 27, 2022 at 12:25pm — 2 Comments
कब चाहा मैंने के तुम मुझसे नैना चार करो
कब चाहा मैंने के तुम मुझसे मुझसा प्यार करो
कब चाहा मैंने के तुम मेरे जैसा इज़हार करो
कब चाहा मैंने के तुम अपने प्रेम का इकरार करो
कब चाहा मैंने के तुम मुझसे मिलने को तड़पो
कब…
ContinueAdded by AMAN SINHA on June 24, 2022 at 10:59am — No Comments
मैं बंजारा, मैं आवारा, फिरता दर दर पर ना बेचारा
ना मन पर मेरा ज़ोर कोई, मैं अपने मन से हूँ हारा
ठिठक नहीं कोई ठौर नहीं, आगे बढ़ने की होड नहीं
कोई मेरा रास्ता ताके, जीवन में ऐसी कोई और नहीं
ना रिश्ता है ना नाता है, बस अपना खुद से वादा…
ContinueAdded by AMAN SINHA on June 21, 2022 at 11:20am — No Comments
जागो मेरे वीर सपूतो, मैंने है आह्वान किया
आज किसी कपटी नज़रों ने मेरा है अपमान किया
किसी पापी के नापाक कदम, मेरी छाती पर ना पड़ने पाए
आज सभी तुम प्रण ये कर लो, जो आया, कुछ, ना लौट के जाने पाये
दिखला दो तुम दुश्मन को, तुम भारत के वीर सिपाही…
ContinueAdded by AMAN SINHA on June 17, 2022 at 11:15am — No Comments
क्यों परेशान होता है तू , जिसे जाना है वो जाएगा
हाथ जोड़ कर पैर पकड कर, तू उसको रोक ना पाएगा
वो जाता है तो जाने दे, पर याद न उसकी जाने दे
तू उसको ये अवसर ना दे, वो बाद मे तुझे बहाने दे
जिसको आँसू की क़दर नहीं, ना होने का तेरे असर नहीं
उसे रोक के क्या तू पाएगा, तेरी खातिर जो बेसबर नहीं
तू रोके तो रुक जाएगा, घड़ियाली आँसू बहाएगा
अपनी हर नाकामी…
ContinueAdded by AMAN SINHA on June 14, 2022 at 12:30pm — 1 Comment
मैं बिकती हूँ बाज़ारों में, तन ढंकने को तन देती हूँ
मैं बिकती हूँ बाज़ारों में, अन्न पाने को तन देती हूँ
तन देना है मर्जी मेरी, मैं अपने दम पर जीती हूँ
जिल्लत की पानी मंजूर नहीं, मेहनत का विष मैं पिती हूँ
हाथ पसारा जब मैंने, हवस की नज़रों ने भेद दिया
अपनों के हीं घेरे में, तन मन मेरा छेद…
ContinueAdded by AMAN SINHA on June 11, 2022 at 10:24am — No Comments
तू उगता सा सूरज, मैं ढलता सितारा
तेरी एक झलक से मैं छुप जाऊँ सारा
तू गहरा सा सागर, मैं छिछलाता पानी
तू सर्वगुण सम्पन्न मैं निर्गुण अभिमानी
तू दीपक के जैसा मैं हूँ एक अंधेरा
तू निराकार रचयिता, मैं…
ContinueAdded by AMAN SINHA on June 9, 2022 at 11:30am — No Comments
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