मन की...
तपती धरा पर
कुछ बूंदें ही बारिश की
यूँ पड़ी..
न कोई राहत ,न ही सौंधी सी महक
सिर्फ बेचैनी और उमस
कहीं संवेदनाओं की मिट्टी
पत्थर तो नहीं हो गई
या वर्ष भर के
लम्बे विरह से
मिलन की ,भूख-प्यास चाहती हो
खूब टूट-टूट कर
बरसें ये बादल
हाँ..! यही सच है
शायद..
मन भी यही चाहता है.
जितेन्द्र’गीत’
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Added by जितेन्द्र पस्टारिया on June 29, 2014 at 11:00am — 22 Comments
“ आज का मैच तो बड़ा रोमांचक है यार, बड़े जबर्दस्त फार्म में है टीम...”
“अरे हाँ यार! तेरे घर तो मैच देखने का आनंद ही अलग है, पर यार ये अन्दर से कराहने की आवाज तेरी मम्मी की आ रही है क्या..?”
“ आने दे यार! वो तो उनकी रोज की आदत है, बूढी जो हो गई है थोड़ी देर में सो जाएँगी. तू तो मैच देख मैच”
जितेन्द्र ’गीत’
( मौलिक व् अप्रकाशित )
Added by जितेन्द्र पस्टारिया on June 17, 2014 at 12:35pm — 36 Comments
“माँ ! मैं तुम्हारे और दोनों भाइयों के हाथ जोडती हूँ, मुझे कुछ पैसे दे दो या दिलवा दो.. भगवान् के लिए मदद करो.. चार दिनों बाद बेटी की शादी है..”
“देखो दीदी..! .. हमने हर समय तुम्हारा बहुत साथ दिया है.. यहाँ तक कि तुम्हारी दोनों बेटियों की शादी का पूरा खर्च वहन करने की सोचे थे. बेटे को भी काम-धंधे पर लगवा देंगे.. लेकिन तुमने निकम्मे जीजाजी.. और लोगो के कहने पर हम पर ही मुकदमा दायर कर दिया.. ? क्या तो हिस्सा पाने की खातिर ?!! ”
“माँ, तुम तो कुछ बोलो, तुम्ही समझाओ न.. इन…
Added by जितेन्द्र पस्टारिया on June 10, 2014 at 1:00am — 14 Comments
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