२१२२/२१२२/२१२
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जो नदी की आस लेकर जी रहे हैं
एक अनबुझ प्यास लेकर जी रहे हैं।१।
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है बहुत धोखा सभी की साँस में यूँ
परकटे विश्वास लेकर जी रहे हैं।२।
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जो पुरोधा हैं यहाँ स्वाधीनता के
साथ अनगिन दास लेकर जी रहे हैं।३।
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भोग में डूबे स्वयम् उपदेश देकर
कौन ये सन्यास लेकर जी रहे हैं।४।
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जिन्दगी उन को लुभा ले हर्ष देकर
जो मरण की आस लेकर जी रहे हैं।५।
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एक दिन तो ईश को सुनना पड़ेगा
जीभ में अरदास लेकर जी रहे…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 30, 2022 at 10:50am — 11 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
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सीमित से दायरे में न पल भर उड़ान हो
उनको भी अब तो एक बड़ा आसमान हो।१।
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दुत्कार अब न तुम लिखो हिस्से अनाथ के
राजन सभी के नाथ हो सब को समान हो।२।
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केवल हों कर्म ध्यान में नित मान के लिए
इस को नहीं जरूरी बड़ा खानदान हो।३।
*
मन्जिल की दूरियों को अभी पाटना इन्हें
इतनी अधिक न पाँव के हिस्से थकान हो।४।
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जनता को खुद ही चाहिए उनको न ताज दे
जिस की भी लोकराज में कड़वी जबान हो।५।
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हिस्से में…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 25, 2022 at 7:00am — 4 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
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खंडित करे न देश को तलवार मजहबी
आँगन खड़ी न कीजिए दीवार मजहबी।।
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मन्शा उन्हीं की देश को हर बार तोड़ना
करते रहे हैं लोग जो व्यापार मजहबी।।
*
जीवन न जाने कितने ही बर्बाद कर रहा
इन्सानियत से दूर हो सन्सार मजहबी।।
*
माटी का मोल प्रेम की भाषा भी साथ हो
इन के बिना तो व्यर्थ है सँस्कार मजहबी।।
*
समरसता ज्ञान और न आपस का मेल है
बच्चों को जो भी देते हैं आधार मजहबी।।
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करती नहीं है धर्म का कोई भी काम…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 22, 2022 at 10:00am — 2 Comments
१२२२/१२२२/१२२२/१२२२
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नहीं ऐसा स्वयं यूँ ही सभी को दीप जलते हैं
दुआ माँ की फलित होती तभी तो दीप जलते हैं।।
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तमस की रात कितनी हो ये सूरज ही करेगा तय
मगर सब को उजाला हो इसी को दीप जलते हैं।।
*
हवा से यारियाँ उन की उसी से साँस चलती है
सदा तूफान से लड़कर बली हो दीप जलते हैं।।
*
तुम्हारे जन्म से यौवन खुशी को जो लड़े तम से
बुढ़ापे में तके पथ को वही दो दीप जलते हैं।।
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जलाया घर अमावस ने है लेकर नाम उनका ही
कहेगा कौन अब ऐसा सभी को दीप जलते…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 21, 2022 at 5:21am — No Comments
दोहे -पिता
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पिता एक उम्मीद सह, हैं जीवन की आस
वो हिम्मत परिवार की, हैं मन का विश्वास।१।
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जीवन जग में तात ही, केवल ऐसा गाँव
सघन शीत जो धूप दें, और धूप में छाँव।२।
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जो करते सुत को सरल, जीवन की हर राह
अनुभव से अर्जित हमें, देकर सीख अथाह।२।
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डाँट-डपट करते भले, भोर, दिवस या रात
सम्बल सबके पर रहे, कठिन समय में तात।४।
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नित सुख में परिवार हो, होती मन में चाह
हँसते -हँसते झेलते, इस को पीर अथाह।५।
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पत्थर से व्यवहार…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 18, 2022 at 3:53pm — 4 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
चाहत है मन में एक ही दुनिया सयानी हो
अब रक्त डूबी इस में न कोई कहानी हो।।
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होता अगर हो प्यार का आबाद हर नगर
हर बात उसकी हम को भी यूँ आसमानी हो।।
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भटको न आस पास के रंगीं नजारे देख
पथ में रखो निगाह जो ठोकर न खानी हो।।
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हमने उन्हें खुदा का जो दर्जा दिया है फिर
कोई सजा अगर हो तो उन की जुबानी हो।।
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किस्मत बड़ी है मान ले दामन में गर गिरे
मोती सा आबदार जो आँखों का पानी हो
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दिल है जवाँ…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 17, 2022 at 7:14am — No Comments
आओ कसम लें देश जलाया न जाएगा
अब एक दूसरे को चिढ़ाया न जाएगा।।
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यह देश राम श्याम से विक्रम भरत से है
वन्शज इन्हीं के सारे भुलाया न जाएगा।।
*
मंगोल हूण शक या मुगल आर्य जो भी हैं
आपस में इन को और लड़ाया न जाएगा।।
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बाबर की भूल आज भी जुम्मन गले लगा
सबको कसम है ऐसा सिखाया न जाएगा।।
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संख्या का खेल देश में मन्जूर अब नहीं
कोई भी भेद-भाव हो गाया न जाएगा।।
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होगी समान न्याय की जब रीत देश में
तब…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 14, 2022 at 6:18pm — 2 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
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बाबर से यार जो भी बुलाने पे आ गये
इतिहास लिख के झूठ छुपाने पे आ गये।१।
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अनबन से घर की गैर जो न्योते गये कभी
अपनों के बाद खुद भी निशाने पे आ गये।२।
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पुरखों को अपने भूल के अपनाते गैर को
ये कौन लोग देश जलाने पे आ गये।३।
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कानून कैसे आज भी पहले सा है विवश
गुण्डे समूची फौज ले थाने पे आ गये।४।
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गुजरा वो दौर बम से जो दहले था देश पर
पत्थर से आज शान्ति उड़ाने पे जा गये।५।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 12, 2022 at 9:30pm — 4 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
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जो व्यक्ति जग में जन्म से अपना इमाम हो
बोलो किसी भी और का क्योंकर ग़ुलाम हो।।
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इतनी न आपने देश में फैले अशान्ति फिर
घर में सभी के आज भी पौदा जो राम हो।।
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चाहे किसी भी कौम से नाता हो फर्क क्या
जाफर न घर में आप के, पैदा कलाम हो।।
*
दण्डित किया ही जाएगा गद्दार देश में
अब्दुल गणेश जोन या करतार नाम हो।।
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छोड़ो ये खानदान ये मजहब ये जातियाँ
सबकी वतन में देखिए पहचान काम हो।।
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नफरत लिए न भोर के बैठी हो…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 8, 2022 at 9:58am — 2 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
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खिचवाते भीत प्रीत की ऊँची नहीं कहीं
मीनारें नफरतों की ये ढहती नहीं कहीं।।
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जकड़ा है राजनीति ने मकड़ी के जाल सा
इतिहास खोद बस्तियाँ मिलती नहीं कहीं।।
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होली में कब वो रंग में डूबा था पूछ मत
अब तो मिठास ईद की दिखती नहीं कहीं।।
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मजहब के फेर भूल के भटके हैं इस तरह
आये हैं ऐसी राह जो खुलती नहीं कहीं।।
*
मन्दिर के भग्नभाग का इतिहास क्या कहें
बातें जो वामियान की थमती नहीं कहीं।।
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बाबर ढहाया तोड़ के…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 7, 2022 at 12:55pm — 2 Comments
२१२२/२१२२/२१२२/२१२
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कैसे कैसे सर बचाने में लगे हैं लोग सब
क्या समझ खन्जर बचाने में लगे हैं लोग सब।।
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एक हम हैं जो शिखर पर जान देने पर तुले
नींव के पत्थर बचाने में लगे हैं लोग सब।।
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लहलहाते खेत मेटे सेज के विस्तार को
आजकल बन्जर बचाने में लगे हैं लोग सब।।
*
जिसको देखो आग ही की बात करता है यहाँ
कैसे कह दें घर बचाने में लगे हैं लोग सब।।
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हैं सुरक्षित सोचकर वो भीड़ में शामिल मगर
अपने भीतर डर बचाने में लगे हैं…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 6, 2022 at 12:58pm — No Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
मजहब की नफरतों का ये मन्जर नया नहीं
टोपी तिलक के बीच का अन्तर नया नहीं।१।
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कितनों को कोसें और कहें जा निकल अभी
जाफर विभीषणों से भरा घर नया नहीं।२।
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कितना बचेंगे साध के चुप्पी भला यहाँ
अपनों की आस्तीन का खन्जर नया नहीं।३।
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उन की जुबाँ पे आज भी बँटवारा बैठा है
अपनों से पायी पीर का सागर नया नहीं।४।
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उन्माद नाम धर्म के लिख राजनीति ने
देना तो देश दुनिया को उत्तर नया नहीं।५।
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उलझे हुओं की सोच में तारण उसी से…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 4, 2022 at 9:39pm — 2 Comments
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