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Neelam Upadhyaya's Blog – June 2010 Archive (3)

वो पीपल का पेड़

वो पीपल का पेड़ था । सड़क के किनारे - फुटपाथ से लगा - सालो से खड़ा । उस सड़क के इस पार बस स्टैण्ड है । सुबह दफ्तर जाने के लिए इसी बस स्टैण्ड से बस लेती रही हूँ । दफ्तर ही क्यों शहर के किसी भी हिस्से में जाना हो तो बस लेने के लिए यही सबसे नजदीक का बस स्टैण्ड है । पिछले तेइस वर्षों से यही रुटीन है - सुबह साढ़े आठ बजे से पौने नौ बजे के बीच यहाँ पहुँचना होता है ताकि ठीक समय पर बस लेकर ठीक समय पर दफ्तर पहुँचा जा सके । मेरी ही तरह और भी हैं जो उसी समय पर उसी बस में सवार होते हैं । जब तक बस आए,… Continue

Added by Neelam Upadhyaya on June 28, 2010 at 2:46pm — 2 Comments

"एक्सटिंक्ट" होने के कगार पर

पहले वह रोज आती थी

कभी बरामदे के मुंडेर पर बैठती

कभी खिड़की पर

और कभी-कभी तो

हद ही हो जाती जब वो

कमरे के अन्दर तक आ जाती ।



रोज सबेरे

जब उसकी आवाज सुनते

तब लगता

कि सुबह हो गई है

तब शुरू हो जाता

हमारा रोजनामचा ।



दिन ऐसे ही

रोज गुजरते रहे

वह रोज आती रही

हम रोज उसे देखते रहे

फिर एक दिन अचानक

लगा कुछ " मिसिंग" है ।



फिर अखबार में पढ़ा

गौरैया "एक्सटिंक्ट" होने के कगार पर है

एक सदमा… Continue

Added by Neelam Upadhyaya on June 24, 2010 at 3:11pm — 3 Comments

हमार जीवन

माँ - जब हम पैदा भईनी

हम त कुछ न जानत रहनी

कि डायबिटीज भी कुछ होखेला

आ एकरा से जीवन में कुछ फरक परेला

हम त ईहे जानत रहनी कि

अइसही होखत होई - खूब भूख लगत होई -

अइसहीं होखत होई - कबो खूब घुमरी आवत होई

हाथ - पैर झनझनात होई - चश्मा लगवले पर ठीक लऊकत होई I



हमरा खातिर त ई दुनिया

तबो अइसने रहे - सामान्य

हमरा खातिर ई दुनिया

आजो अइसने बा - सामान्य

बाकिर हमार - ना - तहार दुनिया बदल गईल

तब तूं खूब रोवलू

जब तहरा के बतावल गईल… Continue

Added by Neelam Upadhyaya on June 21, 2010 at 11:46am — 6 Comments

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"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
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