221 - 2121 - 1221 - 212
आईं हैं जब से रास ये तन्हाईयाँ हमें
अपनी ही अजनबी लगें परछाईयाँ हमें
ख़ल्वत के अँधेरों में था हासिल हमें सुकूँ
तड़पा रहीं हैं कितना ये रानाइयाँ हमें
देखा न जाता हमसे किसी को भी ग़मज़दा
भातीं नहीं किसी की भी रुस्वाईयाँ हमें
जिसको दिया सहारा उसी ने दग़ा किया
कितना सता रहीं हैं ये अच्छाईयाँ हमें
रानाइयों से दूर निकल आए …
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on July 25, 2021 at 4:46pm — 4 Comments
2122 - 2122 - 2122 - 212
फ़ाइलातुन-फ़ाइलातुन-फ़ाइलातुन-फ़ाइलुन
(बह्र- रमल मुसम्मन् महज़ूफ़)
मसनदों पर आज बैठे हो नहीं बैठोगे कल
फ़र्श पर आ जाओ वैसे भी यहीं बैठोगे कल
देना होगा पूरा-पूरा साहिबो तुमको हिसाब
रू-ब-रू नज़रें मिलाकर यूँ नहीं बैठोगे कल
आज तुम हो होगा कल हाकिम ज़माना देखना
जाग उट्ठा है बशर अब छुप कहीं बैठोगे कल…
Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on July 11, 2021 at 3:54pm — 8 Comments
221 - 2121 - 1221 - 212
है कौन ऐसा जिसको यहाँ आज ग़म नहीं
हर दिल में याद यादों के नश्तर भी कम नहीं
दहलाता हर किसी को ये मंज़र है ख़ौफ़नाक
साँसें हुईं मुहाल कि मसला शिकम नहीं
ग़म को वसीह करते ये अटके हुए बदन
नदियों के तट भी गोर-ए-ग़रीबाँ से कम नहीं
आई वबा ये कैसी कि मातम है हर तरफ़
ग़मगीन चहरे लाशों पे लाशें भी कम नहीं
मस्कन भी थी ये गंगा है मद्फ़न भी आज…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on July 2, 2021 at 11:15pm — 17 Comments
1222 - 1222 - 1222 - 1222
(बह्र-ए-हज़ज मुसम्मन सालिम)
जगह दिल में तुम्हारे अब भी थोड़ी सी बची है क्या
मेरे बिन ज़िन्दगी में जो कमी सी थी वही है क्या
अभी तक आरज़ू जो दफ़्न कर रक्खी है सीने में
तड़प उसकी जो सुनता हूँ वो तुमने भी सुनी है क्या
तेरे साँसों की गर्मी से पिघल कर रह गया हूँ मैं
जो हालत हो गई मेरी वही तेरी हुई है क्या
मिले हो जब भी…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on July 2, 2021 at 6:04pm — 7 Comments
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