For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Rajesh kumari's Blog – July 2014 Archive (6)

कब-कब दामन में आग लगी कब बरसा पानी कह देंगे (ग़ज़ल 'राज')

२२   २२  २२  २२  २२  २२  २२  २२  

अवशेष चिनारों के तुमसे आफ़ात पुरानी  कह देंगे

हालात वहाँ कैसे बिगड़े खुद अपनी जुबानी कह देंगे

 

 दीवारें धज्जी धज्जी सी हर छत दिखती उधड़ी उधड़ी                     

 आसार लहू के अक्स तुम्हें बेख़ौफ़ कहानी कह देंगे

 

दिखते पर्वत सहमे-सहमे औ गुम-सुम से झरने नदियाँ   

कब-कब दामन में आग लगी कब बरसा पानी कह देंगे  

 

जो साथ जला करते थे कभी आबाद रहे जिनसे आँगन

वो आज अल्हेदा चूल्हे खुद दिल की…

Continue

Added by rajesh kumari on July 29, 2014 at 9:48pm — 21 Comments

चुभें ये अगर साफ़ बातें मेरी (ग़ज़ल 'राज')

१२२  १२२  १२२  १२

 

जहाँ  गलतियाँ हों बता दें मेरी

चुभें  ये  अगर साफ़ बातें मेरी

 

तुम्हें जिन्दगी दी तो हक़ भी मिला

तुम्हारे कदम पे निगाहें  मेरी

 

हर इक मोड़ पर तुम मुझे पाओगे

नहीं हैं जुदा तुमसे राहें  मेरी

 

तुम्हें नींद आती नहीं है अगर

कहाँ फिर कटेंगी ये रातें मेरी

 

छुपा क्या सकोगे जबीं की शिकन

हमेशा पढ़ेंगी ये आँखें मेरी

 

तुम्हारी हिफ़ाज़त करूँ जब तलक

चलेंगी तभी तक…

Continue

Added by rajesh kumari on July 23, 2014 at 11:30am — 17 Comments

‘महिला उत्थान’ (लघु कथा )

‘महिला उत्थान’ मुद्दे पर संगोष्ठी से घर लौटते  ही कुमुद से उसके पति ने कहा... “अभी थोड़ी देर पहले ही दीपा आई थी मिठाई लेकर वो  बहुत अच्छे नम्बरों से पास हुई है  कंप्यूटर कोर्स तो उसका पूरा हो ही गया था,तुम्हारी प्रेरणा और  मार्ग दर्शन से कितना कुछ कर लिया इस लड़की ने हमारे घर में काम करते-करते....  अब सोचता हूँ अपने ऑफिस में एक वेकेंसी निकली है इसको रखवा दूँ “

 कुमुद कुछ सोच कर बोली”अजी इतनी भी क्या जल्दी, वैसे भी सोचो इतनी अच्छी काम वाली फिर कहाँ मिलेगी, फिर तो ये काम करेगी…

Continue

Added by rajesh kumari on July 20, 2014 at 11:00am — 28 Comments

झुकी उस डाल में हमको कई चीखें सुनाई दें (ग़ज़ल 'राज')

१२२२  १२२२   १२२२   १२२२ 

तुम्हारे पाँव से कुचले हुए गुंचे दुहाई दें

फ़सुर्दा घास की आहें हमें अक्सर सुनाई दें

 

तुम्हें उस झोंपड़ी में हुस्न का बाज़ार दिखता है

हमें फिरती हुई बेजान सी लाशें दिखाई दें

 

तुम्हें क्या फ़र्क पड़ता है मजे से तोड़ते कलियाँ

झुकी उस डाल में  हमको कई चीखें सुनाई दें

 

न कोई दर्द होता है लहू को देख कर तुमको  

तुम्हें आती हँसी जब सिसकियाँ  भर- भर दुहाई दें 

कहाँ…

Continue

Added by rajesh kumari on July 7, 2014 at 10:00pm — 36 Comments

आँखों देखी---(हादसा )

सन १९८३ मार्च या अप्रेल का महीना हम कुछ परिवार मिलकर विशाखापत्तनम के ऋषिकोंडा बीच पर पिकनिक मनाने गए | उस वक़्त मेरे पति भारतीय नौसेना में  अधिकारी थे अतः मित्र परिवार भी नेवी वाले ही थे|बीच पर पंहुचते ही अचानक तेज बारिश होने लगी|मेरे दोनों बच्चे बहुत छोटे थे अतः उनको  भीगने से बचाने के लिए जगह खोजने लगे |

बीच के किनारे पर मछुआरों की बस्ती थी उन्होंने हमारी परेशानी समझी और हमे अपनी झोंपड़ियों में बिठाया| मछली की बू सहन भी नहीं हो रही थी किन्तु मजबूरी थी फिर उन्होंने कहीं से दूध का…

Continue

Added by rajesh kumari on July 4, 2014 at 8:20pm — 16 Comments

असंतुष्टि (अतुकांत )

एक बाजू गर्वीला पर्वत

अपनी ऊँचाई और धवलता पर इतराता

क्यूँ देखेगा मेरी ओर?

गर्दन  झुकाना तो उसकी तौहीन है न!   

दूजी बाजू छिः !! यह तुच्छ बदसूरत बदरंग शिलाखंड  

मैं क्यूँ देखूँ इसकी ओर

कितना छोटा है ये 

इसकी मेरी क्या बराबरी 

समक्ष,परोक्ष ये ईर्ष्यालू भीड़ ,उफ्फ!!

जब सबकी अपनी-अपनी अहम् की लड़ाई

और मध्य में वर्गीकरण की खाई

फिर क्यूँ शिकायत

अकेलेपन से!! 

अपने दायरे में

संतुष्ट क्यों नहीं…

Continue

Added by rajesh kumari on July 3, 2014 at 10:42pm — 12 Comments

Monthly Archives

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

कुर्सी जिसे भी सौंप दो बदलेगा कुछ नहीं-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

जोगी सी अब न शेष हैं जोगी की फितरतेंउसमें रमी हैं आज भी कामी की फितरते।१।*कुर्सी जिसे भी सौंप दो…See More
5 hours ago
Vikas is now a member of Open Books Online
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
Monday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
Monday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"ओबीओ के मंच से सम्बद्ध सभी सदस्यों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाइयाँ  छंदोत्सव के अंक 172 में…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी ! समय के साथ त्यौहारों के मनाने का तरीका बदलता गया है. प्रस्तुत सरसी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह ..  प्रत्येक बंद सोद्देश्य .. आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, आपकी रचना के बंद सामाजिकता के…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, आपकी दूसरी प्रस्तुति पहली से अधिक जमीनी, अधिक व्यावहारिक है. पर्वो-त्यौहारों…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी  हार्दिक धन्यवाद आभार आपका। आपकी सार्थक टिप्पणी से हमारा उत्साहवर्धन …"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंद पर उपस्तिथि उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार। दीपोत्सव की…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय  अखिलेश कॄष्ण भाई, आयोजन में आपकी भागीदारी का धन्यवाद  हर बरस हर नगर में होता,…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service