है मरने वालों की लंबी बड़ी दास्तां
कुछ मरे हैं यहाँ कुछ मरे हैं वहाँ
एक इंसा की गर्दन है अब तक बची
उसके बदले में ये सब तबाही मची
कितनी बार ऐसे हो चुके हैं हादसे
मुजरिम है सलामत बेगुनाह जा फँसे
आतंकी अपनी हठ पर हैं कबसे अड़े
बहाया है खून लोगों के कर लोथड़े
कितनों का बचपन पिता बिन लुटा
सुहागिनों का सिन्दूर माँगों से छुटा
माँ-बाप के कलेजों के चिथड़े हुये
हालात देश के और भी हैं बिगड़े हुये
हमने दिये हैं सबर…
ContinueAdded by Shanno Aggarwal on July 14, 2011 at 4:00pm — 6 Comments
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