ओ.बी.ओ. के पावन मंच और गुरुजनों को सादर प्रणाम करता हूँ. समयाभाव के चलते नियमित रूप से मंच से जुड नही पा रहा हूँ इसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ और आप सबके बीच कुछ मुक्तक निवेदित कर रहा हूँ. कृपया मार्गदर्शन करें .सादर
क्यूँ कभी प्रेम की ये निशानी लगे.
अश्रुपूरित कभी ये जवानी लगे.
ओस बन खो गये हैं हवा में कहीं,
बूँद पानी की ये जिंदगानी लगे.
प्रेम की बागवानी पुरानी सही.
कृष्ण-राधा की प्यारी कहानी सही.
तुम लिखो फूल…
ContinueAdded by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on July 5, 2013 at 1:30pm — 12 Comments
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