गजल- रंग पानी सा....
बह्र - 2122, 2122, 2122
नारि ही जब शक्ति की दुर्गा-सती है।
आज कल हालात की मारी हुयी है।।
काल बन भस्मासुरों को भस्म कर दें,
निर्भया बन वह सड़क पर लुट रही है।
विष्णु-शिव-ब्रह्मा हुआ है आदमी अब,
सृ-िष्ट - नारी की कहानी त्रासदी है।
नित गरीबी आग में पकती रही पर,
भूख, बच्चों की पढायी सालती है।
रक्त नर का पी कपाली बन लड़ी जो,
खून में लथपथ शिवानी सो रही है।…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 28, 2014 at 9:00pm — 9 Comments
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 10, 2014 at 8:34pm — 10 Comments
गीतिका छन्द......पीपल का वृक्ष
सत्य संकल्पों सहित इक बीज बोया था कभी।
ब्रह्म का अवतार हितकर पूजते पीपल सभी।।
चंचला हैं पत्र निश्छल शक्ति शाखा भॉंपते।
छॉंव शीतल भाव भर कर शांति-सुख नित बॉंटते।।1
देव का उपकार पीपल दु:ख दारूण काटता।
सूर्य-शनि से मुक्त करके दीप लौ को साधता।।
वासना दूषित मन: को सत्य का परिणाम दे।
भूत-प्रेतों को शरण रख मुक्ति आठो याम दे।।2
कामना फलती सदा यदि साधना सत्कार हो।
धैर्य-साहस-चेतना गुण शोध का आधार…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 5, 2014 at 8:30pm — 14 Comments
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