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SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR's Blog – July 2012 Archive (3)

ऐसे वीर शेर हैं अपने छाती ताने ठाढ़े

ऐसे वीर शेर हैं अपने छाती ताने ठाढ़े

घर में घुस कर घेर लिए हैं दुश्मन को ललकारें

गीदड़ – गीदड़ भभकी देता बोल नहीं कुछ पाए

बिल में घुसकर दौड़ डराता अन्दर ही छुप जाये

साँसे अटकी हैं उन सब की भ्रष्टाचारी जो है

क्या मुंह ले वे सामने आयें फाईल यहाँ भरी है

ऐसे वीर शेर हैं अपने छाती ताने ठाढ़े

नमन तुम्हे हे वीर हमारे कल तुम दुनिया जीते !!

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कहते हैं तुम थाने जाओ कोर्ट कचहरी बाहर देश

शर्म नहीं…

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Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 26, 2012 at 1:52pm — 6 Comments

'कोख' को बचाने को ...भाग रही औरतें

कोख को बचाने को भाग रही औरतें 

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ये कैसा अत्याचार है 

'कोख' पे प्रहार है 

कोख को बचाने को 

भाग रही औरतें 

दानवों का राज या 

पूतना का ठाठ …

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Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 14, 2012 at 10:30pm — 12 Comments

मृगनयनी कैसी तू नारी ??

मृगनयनी कैसी तू नारी ??

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मृगनयनी कजरारे नैना मोरनी जैसी चाल

पुन्केशर से जुल्फ तुम्हारे तू पराग की खान

तितली सी इतराती फिरती सब को नाच नचाती

तू पतंग सी उड़े आसमाँ लहर लहर बल खाती

कभी पास में कभी दूर हो मन को है तरसाती

इसे जिताती उसे हराती जिन्हें 'काट' ना आती

कभी उलझ जाती हो ‘दो’ से महिमा तेरी न्यारी

पल छिन हंसती लहराती औंधे-मुंह गिर जाती

कटी पड़ी भी जंग कराती - दांव लगाती

'समरथ' के हाथों में पड़ के लुटती हंसती…

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Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 5, 2012 at 6:30am — 25 Comments

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