2122 1212 22
उसकी आँखों से जूझते आँसू
मैंने देखे हैं बोलते आँसू
कैसे आँखों में बाँध रक्खोगे,
हिज्र की शब में काँपते आँसू,
राज़ कितने छुपाये हैं मन में,
उस की पलकों से झाँकते आँसू
कैसे तस्लीम कर लिये जायें
बेवफ़ा तेरे वास्ते आँसू,
इब्तिदा इश्क़ की हँसाती थी,
इंतिहा में हैं टूटते आँसू
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Anita Maurya on July 15, 2022 at 7:44pm — 3 Comments
212 212 212 212
साथ यादों के उनके ज़माने चले
हम ग़ज़ल कोई जब गुनगुनाने चले
है मुहब्बत का दुश्मन ज़माना तो क्या
हीर राँझा को दरया मिलाने चले
हाथ थामो मेरा और चलो उस तरफ़
जिस तरफ़ दुनिया भर के दिवाने चले
चाह सुहबत की है इसलिए आज हम
चाय पर दोस्तो को बुलाने चले
दाद महफ़िल में जब ख़ूब मिलने लगी
यूँ लगा शेर सारे ठिकाने चले
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Anita Maurya on July 11, 2022 at 8:13am — 3 Comments
२२२ २२२ २२
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ये मत पूछो क्या-क्या निकला,
आँसू का इक दरया निकला
हम उसके दिल से यूँ निकले
जैसे कोई काँटा निकला
जिसको जितना गहरा समझे
वो उतना ही उथला निकला
हिज्र की शब की बात बताऊँ ?
सदियों जैसा लम्हा निकला
दुनिया का ग़म, आहें, तड़पन
दिल से कितना मलबा निकला ....
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Anita Maurya on July 8, 2022 at 6:46pm — 5 Comments
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