Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 31, 2016 at 7:48am — 8 Comments
इस बार सावन कुछ और होगा
सखियों की छेड़ छाड़
और
और पिया का संग होगा |
झूलों पर गुनगुनाते गीत होंगे
फूलों के खुशबू
और
और पिया से मिलन होगा |
गुन गुनाएंगे पत्ते भी
हरी हरी डालियों पर
बिजली जब भी चमकेगी
पिया के आग़ोश में
यौवन पिघलेगा|
अधरों पर अधर
गीतों की फुहार होगी
सावन में लहेरिया पहने
सजन से मिलने की ख्वाहिश
सजन होंगे प्रीत होगी
अब के सावन कुछ और होगा |
नाचेंगे मोर बागों…
ContinueAdded by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 22, 2016 at 6:30pm — 3 Comments
मेरी जान
बनकर दुल्हन
बनी ठनी
सजी संवरी
मृदु मुस्कान
भर चली ।
मेरी लाडो
बन दुल्हन
घर चली |
वीरान आँगन
वो मेरा
कर चली ।
मेरी जान
अपने सजन की
हो चली ।
घर बाबुल का
पीछे छोड़
चल पड़ी…
ContinueAdded by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 18, 2016 at 8:30pm — 8 Comments
एक चंचल
दूजा शांत
करे युद्ध
दो मन |
उड़ान भरता
ख्वाब बुनता
चंचल चितवन
एक मन |
सोचता रहता
कार्य करता
शांत बैठा
दूजा मन |
कैसा युद्ध
कौन जाने
कई माने
कई अनजाने |
कभी सावन
कभी ग्रीष्म
कभी बसंत
कभी शरद |
बदलता रहता
आक्रोश करता
खामोश बैठता
कैसा मन !
मौलिक एवं…
ContinueAdded by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 1, 2016 at 7:23pm — 2 Comments
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