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KALPANA BHATT ('रौनक़')'s Blog – July 2016 Archive (4)

बोलो न

बोलो न

कुछ तो बोलो न

देखो सुबह हो गयी है

आँखों के द्वार खोलो न

चिड़ियाँ भी बुला रही है

बाते उनसे भी कर लो न

मुर्गे ने तड़के बान लगाई

सुनकर उसको उठ जाओ न

बोलो न

कुछ तो बोलो न



ओस की बुँदे

चमक रही पत्तो पर

भीनी हो रही घांस भी

सौंधी सौंधी खुशबू मिट्टी की

उठकर तुम भी ले लो न

बोलो न

कुछ तो बोलो न ।



कलियां खिलने को है आतुर

सूर्य की रौशनी बढ़ रही है

झांक रहे बगुले कहीं पर

है भंवरों की गुंजन कहीं… Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 31, 2016 at 7:48am — 8 Comments

सावन

इस बार सावन कुछ और होगा 

सखियों की छेड़ छाड़

और

और पिया का संग होगा |

झूलों पर गुनगुनाते गीत होंगे

फूलों के खुशबू

और

और पिया से मिलन होगा |

गुन गुनाएंगे पत्ते भी

हरी हरी डालियों पर

बिजली जब भी चमकेगी

पिया के आग़ोश में

यौवन पिघलेगा|

अधरों पर अधर

गीतों की फुहार होगी

सावन में लहेरिया पहने

सजन से मिलने की ख्वाहिश 

सजन होंगे प्रीत होगी

अब के सावन कुछ और होगा |

नाचेंगे मोर बागों…

Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 22, 2016 at 6:30pm — 3 Comments

मेरी जान

मेरी जान

बनकर दुल्हन

बनी ठनी 

सजी संवरी

मृदु मुस्कान

भर चली ।

मेरी लाडो

बन दुल्हन

घर चली | 

वीरान आँगन

वो मेरा

कर चली ।

मेरी जान

अपने सजन की 

हो चली ।

घर बाबुल का 

पीछे छोड़ 

चल पड़ी…

Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 18, 2016 at 8:30pm — 8 Comments

दो मन

एक चंचल 

दूजा शांत 

करे युद्ध 

दो मन |

उड़ान भरता 

ख्वाब बुनता 

चंचल चितवन 

एक मन |

सोचता रहता 

कार्य करता 

शांत बैठा 

दूजा मन |

कैसा युद्ध 

कौन जाने 

कई माने 

कई अनजाने |

कभी सावन 

कभी ग्रीष्म 

कभी बसंत 

कभी शरद |

बदलता रहता 

आक्रोश करता 

खामोश बैठता 

कैसा मन !

मौलिक एवं…

Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 1, 2016 at 7:23pm — 2 Comments

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