Added by Mahendra Kumar on July 10, 2016 at 3:30pm — 10 Comments
Added by Mahendra Kumar on July 6, 2016 at 11:00am — 10 Comments
मफ़ाईलुन/मफ़ाईलुन/मफ़ाईलुन/मफ़ाईलुन
किसी को भी यहाँ पे क्यूँ कोई अपना नहीं मिलता
तुम्हें तुम सा नहीं मिलता, हमें हम सा नहीं मिलता
ज़माना घूम के बैठे, दुआएँ कर के भी देखीं
हमें तो यार कोई भी कहीं तुम सा नहीं मिलता
ज़मीनें एक थीं फिर भी लकीरें खींच दीं हमने
सभी से इसलिए भी दिल यहाँ सबका नहीं मिलता
वहाँ पे बैठ के साहब लिखे तक़दीर वो सबकी
लिखावट एक जैसी है तो क्यूँ लिक्खा नहीं…
Added by Mahendra Kumar on July 2, 2016 at 7:30am — 7 Comments
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