Added by Manan Kumar singh on July 31, 2015 at 12:03am — 2 Comments
Added by Manan Kumar singh on July 30, 2015 at 8:49am — 4 Comments
Added by Manan Kumar singh on July 27, 2015 at 12:30pm — 4 Comments
2122 2122 2122 212
हो गया सागर लबालब अब उफनना चाहिए,
चल रहा मंथन बहुत कुछ तो निकलना चाहिए।
आग यह कबसे दबायी है अभी अंतर सुनो,
कब तलक सुलगे उसे अब तो धधकना चाहिये।
बेइमां अब साहिबां सब क्यूँ हमारे हो गये?,
आज एक उनमें कहीं वाजिब निकलना चाहिये।
है सड़क से राह ले जाती सियासत तक अभी,
अब तुझे भी आप ही घर से निकलना चाहिये।
ले गये सब मोड़ते नदियाँ कहाँ ये बावरे?
इक नदी का रुख अभी भी तो बदलना चाहिये।…
Added by Manan Kumar singh on July 26, 2015 at 7:30am — 13 Comments
Added by Manan Kumar singh on July 19, 2015 at 7:30pm — 6 Comments
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