कैसे भूलें हम ....
पागल दिल की बात को
सावन की बरसात को
मधुर मिलन की रात को
अधरों की सौगात को
बोलो
कैसे भूलें हम
अंतर्मन की प्यास को
आती जाती श्वास को
भावों के मधुमास को
उनसे मिलन की आस को
बोलो
कैसे भूलें हम
नैनों के संवाद को
धड़कन के अनुवाद को
बीते पलों की याद को
तिमिर मौन के नाद को
बोलो
कैसे भूलें हम
अंतस के तूफ़ान को
धड़कन की पहचान को
अधरों की…
Added by Sushil Sarna on July 31, 2019 at 12:38pm — 4 Comments
मेरा प्यारा गाँव:(दोहे )..............
कहाँ गई पगडंडियाँ, कहाँ गए वो गाँव।
सूखे पीपल से नहीं, मिलती ठंडी छाँव।1।
सूखे पीपल से नहीं, मिलती ठंडी छाँव।
जंगल में कंक्रीट के , दफ़्न हो गए गाँव।2।
जंगल में कंक्रीट के , दफ़्न हो गए गाँव।
घर मिट्टी का ढूंढते, भटक रहे हैं पाँव।3।
घर मिट्टी का ढूंढते, भटक रहे हैं पाँव।
चैन मिले जिस छाँव में, कहाँ गई वो ठाँव।4।
चैन मिले जिस छाँव में, कहाँ गयी वो ठाँव।
मुझको…
Added by Sushil Sarna on July 29, 2019 at 2:00pm — 7 Comments
प्रीत भरे दोहे .....
अगर न आये पास वो, बढ़ जाती है प्यास।
पल में बनता प्रीत का , सावन फिर आभासll
छोड़ो भी अब रूठना , सावन रुत में तात।
बार बार आती नहीं ,भीगी भीगी रात।।
नैन नैन को दे गए , गुपचुप कुछ सन्देश।
अन्धकार में देह से , हुआ अनावृत वेश। ।।
यौवन की नादानियाँ , सावन के उन्माद।
अंतस के संवाद का ,अधर करें अनुवाद।।
याचक दिल की याचना , दिल ने की स्वीकार।
बंद नयन में हो गया , अधरों का…
Added by Sushil Sarna on July 24, 2019 at 2:30pm — 3 Comments
तन्हाई में ...
होती है
बहुत ज़रूरत
तन्हाई में
तन्हा हाथ को
अपने से
एक हाथ की
बोलता रहे
जिसका स्पर्श
सदियों तक
अलसाई सी तन्हाई में
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on July 20, 2019 at 8:05pm — 6 Comments
सजन रे झूठ मत बोलो ...
रहने दो
मेरे घावों पर
मरहम लगाने की कोशिश मत करो
मैं जानती हूँ
तुम्हारे मन में
मैं नहीं
सिर्फ मेरा तन है
जानती हूँ
रैन होते ही तुम आओगे
कुछ बहलाओगे कुछ फुसलाओगे
धीरे धीरे मैं बहल जाऊँगी
मोम सी पिघल जाऊँगी
न न करते
मर्यादाओं की दहलीज़ लाँघ जाऊँगी
भोर के साथ नशा उतर जाएगा
हर वादा बहक जाएगा
हर बार की तरह
मेरे मन में
फिर आने की कसक छोड़ जाओगे
हर इंतज़ार
बस…
Added by Sushil Sarna on July 19, 2019 at 4:24pm — 1 Comment
अहसास .. कुछ क्षणिकाएं
छुप गया दर्द
आँखों के मुखौटों में
मुखौटे
सिर्फ चेहरे पर
नहीं हुआ करते
.............................
छील गया
उल्फ़त की चुभन को
एक रेशमी खंजर
चुपके से
...........................
झील की आगोश में
चाँद की
चाँद संग सरगोशियाँ
कर गई बेनकाब
सह्र की
पहली किरण
........................
बन जाती
घास पर
ओस की बूँद
रोता है
जब चाँद
आसमान…
ContinueAdded by Sushil Sarna on July 15, 2019 at 6:53pm — 6 Comments
श्वासों में....
मैं नहीं चाहता अभी
मृत्यु का वरण करना
प्रेम का वरण करना
शेष है अभी
श्वासों में
प्रतीक्षा की दहलीज़ पर
खड़े हैं कई स्वप्न
निस्तेज से
अवसन्न मुद्रा में
साकार होने को
मैं नहीं चाहता
सपनों की किर्चियों से
पलक पथ को रक्तरंजित करना
तिमिर गुहा में
यथार्थ से
साक्षात्कार करना
शेष है अभी
श्वासों में
अभी अनीस नहीं हुई
मेरी देह
ज़िंदा हैं आज भी…
Added by Sushil Sarna on July 8, 2019 at 5:28pm — 2 Comments
वज़ह.....
बिछुड़ती हुई
हर शय
लगने लगती है
बड़ी अज़ीज
अंतिम लम्हों में
क्योँकि
होता है
हर शय से
लगाव
बेइंतिहा
दर्द होता है
बहुत
जब रह जाती है
पीछे
ज़िंदगी
जीने की
वज़ह
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on July 5, 2019 at 4:56pm — 4 Comments
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