122 122 122 122
जहॉं था अंधेरा घना जि़दगी का
वहीं से मिला रास्ता रोशनी का
सलीबें न बदली न बदले मसीहा
वही हाल है आज तक हर सदी का
सितारे फलक से न आये उतर कर
हुआ कब ख़सारा किसी आशिकी का
न तुम रो सके औ हमारी अना को
सहारा मिला आरज़ी ही खुशी का
समन्दर सुख़न के तलाशे बहुत से
ख़जा़ना मिला है तभी शाइरी का
पिया है वही जाम जो दे ख़ुदाई
न अहसां उठाया न बदला…
ContinueAdded by Ravi Shukla on August 19, 2015 at 3:00pm — 15 Comments
2122 2122 2122 212
जब तलक हो तुम सलामत जिंदगी मेरी रहे
जिस खुशी में तुम रहो खुश वो खुशी मेरी रहे
फेर ले रुख चॉंद अपना मै अभी मसरूफ हूँ
वस्ल की सारी लताफ़त दिलकशी मेरी रहे
खूबसूरत रात है ये खूबसूरत चॉंदनी
चॉंद बेशक हो तुम्हारा रोशनी मेरी रहे
आशिकी भी है कयामत आबशारे इख्तिलाफ़
राहते जां है वही जो नाखुशी मेरी रहे
मैं गलत हूँ या सही ये बात सारी दरगुज़र
चाहती है वो मुझे ये…
ContinueAdded by Ravi Shukla on August 11, 2015 at 6:00pm — 8 Comments
रंग गहरा हो गया है शाम का ।
घर चलो अब वक्त है आराम का ।।
आज उनको याद मेरी आ गई ।
कल तलक मैं था नहीं कुछ काम का ।।
घर चलो दहलीज़ होगी मुन्तजि़र ।
फि़क्र में गुज़रे न वक्फा़ शाम का ।।
खो न जाना इन नज़ारों में कहीं ।
ये फुसूं है चर्खे नीली फ़ाम का ।।
जब पड़ा था काम उनको याद था ।
अब पडा़ हूं जब नहीं कुछ काम का ।।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by Ravi Shukla on August 10, 2015 at 6:00pm — 9 Comments
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कभी कोई मुफलिस कहां बोलता है ।
जो बोले तो फिर आसमां बोलता है ।।
ज़माना नहीं, पासबां बोलता है ।
हुआ कौन उसका, मकां बोलता है ।।
अभी लोग उठकर रवाना हुए हैं ।
ये चूल्हों से उठता धुआं बोलता है ।।
अगर आंच गैरत पे आये तो बोले ।
वगरना कहां बेजुबां बोलता है ।।
दिलासा नहीं काम दे दो मुझे तुम ।
यही बात बोले जहां बोलता है ।।
जमीं उसकी दहकान से…
ContinueAdded by Ravi Shukla on August 5, 2015 at 1:30pm — 14 Comments
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